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त्वे अ॑ग्न आ॒हव॑नानि॒ भूरी॑शा॒नास॒ आ जु॑हुयाम॒ नित्या॑। उ॒भा कृ॒ण्वन्तो॑ वह॒तू मि॒येधे॑ ॥१७॥

English Transliteration

tve agna āhavanāni bhūrīśānāsa ā juhuyāma nityā | ubhā kṛṇvanto vahatū miyedhe ||

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Pad Path

त्वे इति॑। अ॒ग्ने॒। आ॒ऽहव॑नानि। भूरि॑। ई॒शा॒नासः॑। आ। जु॒हु॒या॒म॒। नित्या॑। उ॒भा। कृ॒ण्वन्तः॑। व॒ह॒तू इति॑। मि॒येधे॑ ॥१७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य लोग किसके तुल्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) सत्यवादी आप्तविद्वान् ! जैसे (उभा) दोनों (वहतू) प्राप्ति करानेवाले यजमान और पुरोहित (मियेधे) परिमाण युक्त यज्ञ में (नित्या) नित्य (भूरि) बहुत (आहवनानि) अच्छे दानों को देते हैं, वैसे (ईशानासः) समर्थ हम लोग उन दोनों यजमान पुरोहितों को समर्थ (कृण्वन्तः) करते हुए (त्वे) अग्नि के तुल्य तेजस्वि आप स्वामी के होते हुए उन दोनों को (आ, जुहुयाम) अच्छे प्रकार देवें ॥१७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो यजमान और ऋत्विजों के तुल्य सब मनुष्यों का अच्छी शिक्षा से उपकार करते हैं, उनकी शिक्षा का सब लोग अनुष्ठान करें ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किंवत्किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथोभा वहतू यजमानपुरोहितौ मियेधे नित्या [भूरि] आहवनानि जुहुतस्तथा ईशानासो वयं तौ द्वौ समर्थौ कृण्वन्तस्त्वे स्वामिनि सति तान्याजुहुयाम ॥१७॥

Word-Meaning: - (त्वे) अग्नाविव त्वयि (अग्ने) आप्तविद्वन् (आहवनानि) समन्ताद् दानानि (भूरि) बहूनि (ईशानासः) समर्थाः (आ) समन्तात् (जुहुयाम) दद्याम (नित्या) नित्यानि (उभा) उभौ यजमानपुरोहितौ (कृण्वन्तः) कुर्वन्तः (वहतू) प्रापकौ (मियेधे) परिमाणयुक्ते यज्ञे ॥१७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये यजमानर्त्विग्वत्सर्वान् मनुष्यान् सुशिक्षयोपकुर्वन्ति तच्छिक्षां सर्वेऽनुतिष्ठन्तु ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे यजमान ऋत्विजाप्रमाणे सुशिक्षण देऊन सर्व माणसांवर उपकार करतात ते शिक्षण सर्व लोकांनी कृतीत आणावे. ॥ १७ ॥