यम॒श्वी नित्य॑मुप॒याति॑ य॒ज्ञं प्र॒जाव॑न्तं स्वप॒त्यं क्षयं॑ नः। स्वज॑न्मना॒ शेष॑सा वावृधा॒नम् ॥१२॥
yam aśvī nityam upayāti yajñam prajāvantaṁ svapatyaṁ kṣayaṁ naḥ | svajanmanā śeṣasā vāvṛdhānam ||
यम्। अ॒श्वी। नित्य॑म्। उ॒प॒ऽयाति॑। य॒ज्ञम्। प्र॒जाऽव॑न्तम्। सु॒ऽअ॒प॒त्यम्। क्षय॑म्। नः॒। स्वऽज॑न्मना। शेष॑सा। व॒वृ॒धा॒नम् ॥१२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह अग्नि क्या सिद्ध करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्सोऽग्निः किं साध्नोतीत्याह ॥
हे विद्वांसो ! योऽश्वी नो यं प्रजावन्तं स्वपत्यं यज्ञं क्षयं स्वजन्मना शेषसा वावृधानं नित्यमुपयाति तं यूयं विजानीत ॥१२॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A