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अ॒ग्निं नरो॒ दीधि॑तिभिर॒रण्यो॒र्हस्त॑च्युती जनयन्त प्रश॒स्तम्। दू॒रे॒दृशं॑ गृ॒हप॑तिमथ॒र्युम् ॥१॥

English Transliteration

agniṁ naro dīdhitibhir araṇyor hastacyutī janayanta praśastam | dūredṛśaṁ gṛhapatim atharyum ||

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Pad Path

अ॒ग्निम्। नरः॑। दीधि॑तिऽभिः। अ॒रण्योः॑। हस्त॑ऽच्युती। ज॒न॒य॒न्त॒। प्र॒ऽश॒स्तम्। दू॒रे॒ऽदृश॑म्। गृ॒हऽप॑तिम्। अ॒थ॒र्युम् ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सातवें मण्डल के प्रथम सूक्त का आरम्भ है, इसके पहिले मन्त्र में मनुष्यों को विद्युत् अग्नि कैसे उत्पन्न करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (नरः) विद्वान् मनुष्यो ! जैसे आप (दीधितिभिः) उत्तेजक क्रियाओं से (हस्तच्युती) हाथों से प्रकट होनेवाली घुमानारूप क्रिया से (अरण्योः) अरणी नामक ऊपर नीचे के दो काष्ठों में (दूरेदृशम्) दूर में देखने योग्य (अग्निम्) अग्नि को (जनयन्त) प्रकट करें, वैसे (अथर्युम्) अहिंसाधर्म को चाहते हुए (गृहपतिम्) घर के स्वामी को (प्रशस्तम्) प्रशंसायुक्त करो ॥१॥
Connotation: - हे विद्वान् जनो ! जैसे घिसी हुई अरणियों से अग्नि उत्पन्न होता है, वैसे सब पार्थिव द्रव्य वा वायुसम्बन्धी द्रव्यों के घिसने से जो सर्वत्र व्याप्त हुई विद्युत् उत्पन्न होती है, वह दूर देशों में समाचारादि पहुँचने रूप व्यवहारों को सिद्ध कर सकती है। इस विद्युत् विद्या से गृहस्थों का बड़ा उपकार होता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ नरैः कथं विद्युदुत्पादनीयेत्याह ॥

Anvay:

हे नरो विद्वांसो ! यथा भवन्तो दीधितिभिर्हस्तच्युती अरण्योर्दूरे दृशमग्निं जनयन्त तथाऽथर्युं गृहपतिं प्रशस्तं कुर्वन्तु ॥१॥

Word-Meaning: - (अग्निम्) पावकम् (नरः) (दीधितिभिः) प्रदीपिकाभिः क्रियाभिः (अरण्योः) यथा काष्ठविशेषयोः (हस्तच्युती) हस्तयोः प्रच्युत्या भ्रामणक्रियया (जनयन्त) (प्रशस्तम्) उत्तमम् (दूरदेशम्) दूरे द्रष्टुं योग्यम् (गृहपतिम्) स्वामिनम् (अथर्युम्) अहिंसां कामयमानम् ॥१॥
Connotation: - हे विद्वज्जना ! यथा घर्षिताभ्यामरणिभ्यामग्निरुत्पद्यते तथा सर्वैः पार्थिवैर्वायव्यैर्वा द्रव्यैर्द्रव्याणां घर्षणेन या विद्युत्सर्वव्याप्ता सत्युत्पद्यते सा दूरदेशस्थसमाचारादिव्यवहारान् साद्धुं शक्नोत्येतद्विद्यया गृहस्थानां महानुपकारो भवतीति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, विद्वान, श्रोता, उपदेशक, ईश्वर राजा, प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे विद्वानांनो ! जसे अरणीच्या घर्षणाने अग्नी उत्पन्न होतो तसे पार्थिव व वायू द्रव्याच्या घर्षणाने विद्युत उत्पन्न होते. ती दूरवर वार्ता पोचविण्याचे कार्य करते. या विद्युतमुळे माणसांवर खूप उपकार होतात. ॥ १ ॥