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विश्वे॑ दे॒वा अ॑नमस्यन्भिया॒नास्त्वाम॑ग्ने॒ तम॑सि तस्थि॒वांस॑म्। वै॒श्वा॒न॒रो॑ऽवतू॒तये॒ नोऽम॑र्त्योऽवतू॒तये॑ नः ॥७॥

English Transliteration

viśve devā anamasyan bhiyānās tvām agne tamasi tasthivāṁsam | vaiśvānaro vatūtaye no martyo vatūtaye naḥ ||

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Pad Path

विश्वे॑। दे॒वाः। अ॒न॒म॒स्य॒न्। भि॒या॒नाः। त्वाम्। अ॒ग्ने॒। तम॑सि। त॒स्थि॒ऽवांस॑म्। वै॒श्वा॒न॒रः। अ॒व॒तु॒। ऊ॒तये॑। नः॒। अम॑र्त्यः। अ॒व॒तु॒। ऊ॒तये॑। नः॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:9» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:7 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को किससे डर कर पापाचरण का आचरण न करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) प्रकाशक परमात्मन् ! (तमसि) अन्धकार में (तस्थिवांसम्) स्थित (त्वाम्) परमात्मा के सदृश बिजुली से युक्त को वा प्राण के सदृश परमात्मा को जैसे पृथिवी आदि, वैसे (विश्वे) सम्पूर्ण (देवाः) विद्वान् जन (भियानाः) भय को प्राप्त हुए (अनमस्यन्) नम्र होते हैं वह (वैश्वानरः) सम्पूर्ण संसार के प्रकाशक (अमर्त्यः) मृत्यु धर्म से रहित आप (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (नः) हम लोगों की (अवतु) रक्षा कीजिये और (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (नः) हम लोगों की (अवतु) रक्षा कीजिये ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे प्राण और बिजुली को प्राप्त होकर सम्पूर्ण पृथिवी आदिकों की स्थिति है और जैसे अग्नि से सम्पूर्ण प्राणी डरते हैं, वैसे ही सर्वत्र व्यापी और सब के अन्तर्यामी परमात्मा को मान के पाप के आचरण से विद्वान् जन डरते हैं, इस निमित्त से सब जन इससे डरें ॥७॥ इस सूक्त में दिनरात्रि, अपत्य, जीव, परमात्मादिकों की स्थिति का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह नवम सूक्त और ग्यारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कस्माद्भीत्वा पापाचरणं नाचरणीयमित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! परमात्मँस्तमसि तस्थिवांसं त्वां पृथिव्यादय इव विश्वे देवा भियाना अनमस्यन्त्स वैश्वानरोऽमर्त्त्यो भवानूतये नोऽस्मानवतूतये नोऽस्मानवतु ॥७॥

Word-Meaning: - (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (अनमस्यन्) प्रह्वीभूता भवन्ति (भियानाः) भयं प्राप्ताः (त्वाम्) परमात्मानमिव विद्युद्युक्तं प्राणमिव परमात्मनम् (अग्ने) पावकेश्वर (तमसि) अन्धकारे (तस्थिवांसम्) प्रतिष्ठन्तम् (वैश्वानरः) विश्वस्य संसारस्य प्रकाशकः (अवतु) रक्षतु (ऊतये) रक्षणाद्याय (नः) अस्मान् (अमर्त्यः) मृत्युधर्मरहितः (अवतु) (ऊतये) (नः) अस्मान् ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा प्राणविद्युतौ प्राप्य सर्वेषां पृथिव्यादीनां स्थितिर्वर्त्तते यथाग्नेः सर्वे प्राणिनोः बिभ्यति तथैव सर्वव्यापिनं सर्वान्तर्यामिणं परमात्मानं मत्वा पापाचरणाद्विद्वांसो बिभ्यतीति सर्वेऽस्माद्बिभ्यत्विति ॥७॥ अत्राऽहोरात्र्यपत्यजीवपरमात्मादीनां स्थितिवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति नवमं सूक्तमेकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जसे प्राण व विद्युतमुळे संपूर्ण पृथ्वीची स्थिती विद्यमान असते व जसे अग्नीला सर्व प्राणी घाबरतात तसेच सर्वव्यापी व सर्वांच्या अन्तर्यामी असलेल्या परमेश्वराला मानून पापाचरण करताना विद्वान लोक भयभीत होतात. या कारणामुळे सर्व लोकांनी त्याला भ्यावे. ॥ ७ ॥