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ध्रु॒वं ज्योति॒र्निहि॑तं दृ॒शये॒ कं मनो॒ जवि॑ष्ठं प॒तय॑त्स्व॒न्तः। विश्वे॑ दे॒वाः सम॑नसः॒ सके॑ता॒ एकं॒ क्रतु॑म॒भि वि य॑न्ति सा॒धु ॥५॥

English Transliteration

dhruvaṁ jyotir nihitaṁ dṛśaye kam mano javiṣṭham patayatsv antaḥ | viśve devāḥ samanasaḥ saketā ekaṁ kratum abhi vi yanti sādhu ||

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Pad Path

ध्रु॒वम्। ज्योतिः॑। निऽहि॑तम्। दृ॒शये॑। कम्। मनः॑। जवि॑ष्ठम्। प॒तय॑त्ऽसु। अ॒न्तरिति॑। विश्वे॑। दे॒वाः। सऽम॑नसः। सऽके॑ताः। एक॑म्। क्रतु॑म्। अ॒भि। वि। या॒न्ति॒। सा॒धु ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:9» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस शरीर में क्या-क्या जानने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (दृशये) दर्शन के लिये (ध्रुवम्) निश्चल (निहितम्) स्थित (कम्) सुखस्वरूप (ज्योतिः) अपने से प्रकाशित और सब का प्रकाशक ब्रह्म है, उसके आधार में जो (जविष्ठम्) अतिवेगयुक्त (पतयत्सु) पति सदृश के आचरण करते हुओं में (अन्तः) मध्य में वर्त्तमान (मनः) अन्तःकरण का व्यापार है, उसके आश्रय से (समनसः) सहकारि साधन मन जिनका और (सकेताः) तुल्य बुद्धि जिनकी वे (विश्वे) संपूर्ण (देवाः) अपने-अपने विषयों को प्रकाशित करनेवाली श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ (एकम्) सहायरहित (ऋतुम्) जीव के प्रज्ञान को (साधु) उत्तम प्रकार (अभि) सन्मुख (वि) विशेष करके (यन्ति) प्राप्त होते हैं, यह आप लोग जानो ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! इस शरीर में सच्चिदानन्दस्वरूप अपने से प्रकाशित ब्रह्म, द्वितीय जीव, तृतीय मन, चौथी इन्द्रियाँ, पाँचवें प्राण, छठा शरीर वर्त्तमान है, ऐसा होने पर सम्पूर्ण व्यवहार सिद्ध होते हैं । जिनके मध्य से सब का आधार ईश्वर, देह, अन्तःकरण प्राण और इन्द्रियों का धारण करनेवाला और जीवादिकों का अधिष्ठान शरीर है, यह जानो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अस्मिञ्छरीरे किं किं विज्ञेयमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यद्दृशये ध्रुवं निहितं कं ज्योतिर्ब्रह्मास्ति तदाधारे यज्जविष्ठं पतयत्स्वन्तर्वर्त्तमानं मनोऽस्ति तदाश्रयेण समनसः सकेता विश्वे देवा एकं क्रतुं साध्वभि वि यन्तीति यूयं विजानीत ॥५॥

Word-Meaning: - (ध्रुवम्) निश्चलम् (ज्योतिः) स्वप्रकाशं सर्वप्रकाशकं वा (निहितम्) स्थितम् (दृशये) दर्शनाय (कम्) सुखस्वरूपम् (मनः) अन्तःकरणवृत्तिः (जविष्ठम्) वेगवत्तमम् (पतयत्सु) पतिरिवाचरत्सु (अन्तः) आभ्यन्तरे (विश्वे) सर्वे (देवाः) स्वस्वविषयप्रकाशकानि श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि (समनसः) समानं सहकारि साधनं मनो येषान्ते (सकेताः) समानं केतः प्रज्ञा येषान्ते (एकम्) असहायम् (क्रतुम्) जीवस्य प्रज्ञानम् (अभि) आभिमुख्ये (वि) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (साधु) ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! अस्मिञ्छरीरे सच्चिदानन्दलक्षणं स्वप्रकाशं ब्रह्म द्वितीयो जीवस्तृतीयं मनश्चतुर्थानीन्द्रियाणि पञ्चमाः प्राणाः षष्ठं शरीरञ्च वर्त्तत एवं सति सर्वे व्यवहाराः सिद्धा जायन्ते येषां मध्यात्सर्वाधार ईश्वरो देहान्तःकरणप्राणेन्द्रियधर्त्ता जीवादीनामधिष्ठानं शरीरमिति विजानीत ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! या शरीरात सच्चिदानंदस्वरूपाने प्रकाशित ब्रह्म, दुसरा जीव, तिसरे मन, चौथी इंद्रिये, पाचवा प्राण, सहावे शरीर असे असल्यामुळे संपूर्ण व्यवहार सिद्ध होतात. सर्वांचा आधार ईश्वर असून देह, अंतःकरण, प्राण व इंद्रियांना धारण करणारे व जीवाचे अधिष्ठान शरीर आहे, हे जाणा. ॥ ५ ॥