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अ॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षा अ॑गृभ्णत॒ विशो॒ राजा॑न॒मुप॑ तस्थुर्ऋ॒ग्मिय॑म्। आ दू॒तो अ॒ग्निम॑भरद्वि॒वस्व॑तो वैश्वान॒रं मा॑त॒रिश्वा॑ परा॒वतः॑ ॥४॥

English Transliteration

apām upasthe mahiṣā agṛbhṇata viśo rājānam upa tasthur ṛgmiyam | ā dūto agnim abharad vivasvato vaiśvānaram mātariśvā parāvataḥ ||

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Pad Path

अ॒पाम्। उ॒पऽस्थे॑। म॒हि॒षाः। अ॒गृ॒भ्ण॒त॒। विशः॑। राजा॑नम्। उप॑। त॒स्थुः॒। ऋ॒ग्मिय॑म्। आ। दू॒तः। अ॒ग्निम्। अ॒भ॒र॒त्। वि॒वस्व॑तः। वै॒श्वा॒न॒रम्। मा॒त॒रिश्वा॑। प॒रा॒ऽवतः॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:8» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह वायु कैसा है और क्या करता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! जो (दूतः) सन्तापित करानेवाला (मातरिश्वा) अन्तरिक्ष में शयन करनेवाला वायु (परावतः) दूर स्थित (विवस्वतः) सूर्य्य के (वैश्वानरम्) सर्वत्र प्रकाशमान (अग्निम्) अग्नि को (अभरत्) धारण करता और जिस (ऋग्मियम्) ऋचाओं द्वारा प्रमाण किया जाता उस (राजानम्) जैसे राजा का, वैसे सूर्य को (विशः) प्रजायें (उप) समीप में (आ) चारों ओर से (तस्थुः) प्राप्त होती हैं, वैसे सूर्य्य उपस्थित होता है और जिस (अपाम्) प्राणों वा जलों के (उपस्थे) समीप में वर्त्तमान का (महिषाः) बड़े जन (अगृभ्णत) ग्रहण करते हैं, उस वायु को आप लोग जानिये ॥४॥
Connotation: - जैसे वायु दूर वर्त्तमान भी सूर्य्य के तेज को धारण करता है, वैसे उत्तम राजा दूर स्थित भी प्रजाओं का पोषण करे ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स वायुः कीदृशः किं करोतीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यो दूतो मातरिश्वा परावतो विवस्वतो वैश्वानरमग्निमभरद् यमृग्मियं राजानं विश उपाऽऽतस्थुरिव सूर्य्यमुपतिष्ठति यमपामुपस्थे वर्त्तमानं महिषा अगृभ्णत तं वायुं यूयं विजानीत ॥४॥

Word-Meaning: - (अपाम्) प्राणानां जलानां वा (उपस्थे) समीपे (महिषाः) महान्तः (अगृभ्णत) गृह्णन्ति (विशः) (राजानम्) राजानमिव सूर्य्यम् (उप) (तस्थुः) तिष्ठन्ति (ऋग्मियम्) य ऋग्भिर्मीयते तम् (आ) समन्तात् (दूतः) यो दुनोति परितापयति सः (अग्निम्) पावकम् (अभरत्) भरति (विवस्वतः) सूर्य्यस्य (वैश्वानरम्) विश्वस्मिन् प्रकाशमानम् (मातरिश्वा) यो मातर्य्यन्तरिक्षे शेते सः वायुः (परावतः) दूरे स्थितस्य ॥४॥
Connotation: - यथा वार्युदूरस्थस्याऽपि सूर्य्यस्य तेजो बिभर्त्ति तथोत्तमो राजा दूरस्था अपि प्रजां बिभृयात् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा वायू दूर असलेल्या सूर्याच्या तेजाला धारण करतो तसे उत्तम राजाने दूर असलेल्या प्रजेचे पोषण करावे. ॥ ४ ॥