स जाय॑मानः पर॒मे व्यो॑मनि व्र॒तान्य॒ग्निर्व्र॑त॒पा अ॑रक्षत। व्य१॒॑न्तरि॑क्षममिमीत सु॒क्रतु॑र्वैश्वान॒रो म॑हि॒ना नाक॑मस्पृशत् ॥२॥
sa jāyamānaḥ parame vyomani vratāny agnir vratapā arakṣata | vy antarikṣam amimīta sukratur vaiśvānaro mahinā nākam aspṛśat ||
सः। जाय॑मानः। प॒र॒मे। विऽओ॑मनि। व्र॒तानि॑। अ॒ग्निः। व्र॒त॒ऽपाः। अ॒र॒क्ष॒त॒। वि। अ॒न्तरि॑क्षम्। अ॒मि॒मी॒त॒। सु॒ऽक्रतुः॑। वै॒श्वा॒न॒रः। म॒हि॒ना। नाक॑म्। अ॒स्पृ॒श॒त् ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे विद्वांसो ! युष्माभिर्यो व्रतपा अग्निः परमे व्योमनि जायमानो व्रतान्यरक्षतान्तरिक्षं व्यमिमीत सुक्रतुर्वैश्वानरो महिना नाकमस्पृशत् स वेदितव्यः ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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