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इन्द्रा॑सोमा प॒क्वमा॒मास्व॒न्तर्नि गवा॒मिद्द॑धथुर्व॒क्षणा॑सु। ज॒गृ॒भथु॒रन॑पिनद्धमासु॒ रुश॑च्चि॒त्रासु॒ जग॑तीष्व॒न्तः ॥४॥

English Transliteration

indrāsomā pakvam āmāsv antar ni gavām id dadhathur vakṣaṇāsu | jagṛbhathur anapinaddham āsu ruśac citrāsu jagatīṣv antaḥ ||

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Pad Path

इन्द्रा॑सोमा। प॒क्वम्। आ॒मासु॑। अ॒न्तः। नि। गवा॑म्। इत्। द॒ध॒थुः॒। व॒क्षणा॑सु। ज॒गृ॒भथुः॑। अन॑पिऽनद्धम्। आ॒सु॒। रुश॑त्। चि॒त्रासु॑। जग॑तीषु। अ॒न्तरिति॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:72» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किसके तुल्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! तुम दोनों जैसे (इन्द्रासोमा) पवन और बिजुली (आमासु) न पकी हुई सामग्रियों के (अन्तः) बीच (पक्वम्) पाक को (नि, दधथुः) स्थापन करते हैं और (गवाम्) किरणों के बीच (इत्) निश्चित तथा (आसु) इन (वक्षणासु) नदियों में (अनपिनद्धम्) खुला हुआ (जगृभथुः) ग्रहण करते हैं तथा इन (चित्रासु) अद्भुत (जगतीषु) सृष्टियों के (अन्तः) बीच (रुशत्) सुरूप को धारण करते हैं, वैसे तुम वर्तो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो बिजुली और सोम के समान सब में दृढ़ ज्ञान स्थापन कर नदी के प्रवाह के तुल्य आगे चलाते हैं, वे संसार में कल्याण करनेवाले होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ किंवत् किं कुर्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! युवां यथेन्द्रसोमा आमास्वन्तः पक्वं नि दधथुर्गवामिदासु वक्षणास्वनपिनद्धं जगृभथुरासु चित्रासु जगतीष्वन्तो रुशद्दधथस्तथा युवां वर्त्तेयाथाम् ॥४॥

Word-Meaning: - (इन्द्रसोमा) वायुविद्युतौ (पक्वम्) (आमासु) अपक्वासु ओषधीषु (अन्तः) मध्ये (नि) (गवाम्) किरणानाम् (इत्) एव (दधथुः) धत्तः (वक्षणासु) नदीषु (जगृभथुः) गृह्णीतः। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः। (अनपिनद्धम्) अनाच्छादितम् (आसु) (रुशत्) सुरूपम्। (चित्रासु) अद्भुतासु (जगतीषु) सृष्टिषु (अन्तः) मध्ये ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्युत्सोमवत्सर्वे दृढं ज्ञानं संस्थाप्य नदीप्रवाहवदग्रे चालयन्ति ते जगति कल्याणकरा भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्युत व वायूप्रमाणे सर्वांमध्ये दृढ ज्ञान स्थापित करतात व नदीच्या प्रवाहाप्रमाणे पुढे प्रवाहित करतात ते जगाचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ४ ॥