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इन्द्रा॑सोमा॒ महि॒ तद्वां॑ महि॒त्वं यु॒वं म॒हानि॑ प्रथ॒मानि॑ चक्रथुः। यु॒वं सूर्यं॑ विवि॒दथु॑र्यु॒वं स्व१॒॑र्विश्वा॒ तमां॑स्यहतं नि॒दश्च॑ ॥१॥

English Transliteration

indrāsomā mahi tad vām mahitvaṁ yuvam mahāni prathamāni cakrathuḥ | yuvaṁ sūryaṁ vividathur yuvaṁ svar viśvā tamāṁsy ahataṁ nidaś ca ||

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Pad Path

इन्द्रा॑सोमा। महि॑। तत्। वा॒म्। म॒हि॒ऽत्वम्। यु॒वम्। म॒हानि॑। प्र॒थ॒मानि॑। च॒क्र॒थुः॒। यु॒वम्। सूर्य॑म्। वि॒वि॒दथुः॑। यु॒वम्। स्वः॑। विश्वा॑। तमां॑सि। अ॒ह॒त॒म्। नि॒दः। च॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:72» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और उपदेशक किसके तुल्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! जैसे (इन्द्रासोमा) बिजुली और चन्द्रमा (सूर्यम्) सूर्य्य को (विविदथुः) प्राप्त होते हैं, वैसे (युवम्) तुम न्यायरूपी सूर्य्य को प्राप्त होओ, जैसे ये बड़े कामों को करते हैं, वैसे (वाम्) तुम्हारा (तत्) वह (महि) महान् (महित्वम्) बड़प्पन है और वैसे (युवम्) तुम (महानि) प्रशंसा योग्य (प्रथमानि) ब्रह्मचर्य्य और विद्या ग्रहण और दान आदि कामों को (चक्रथुः) करो (युवम्) तुम जैसे यह दोनों (विश्वा) समस्त (तमांसि) रात्रि के समान अविद्या आदि अन्धकारों को नष्ट करते हैं, वैसे अविद्या और अन्याय से उत्पन्न हुए पापों को (अहतम्) नष्ट करो (स्वः) सुख की प्राप्ति करो वा कराओ (निदः, च) और निन्दक तथा पाखण्डियों को निरन्तर नष्ट करो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे प्रजाजनो ! जैसे सूर्य को प्राप्त होकर चन्द्र आदि लोक प्रकाशित होते हैं, वैसे ही अध्यापक और उपदेशकों का सङ्ग कर सब प्रकाशित आत्मावाले हों ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाध्यापकोपदेशकौ किंवत् किं कुर्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! यथेन्द्रासोमा सूर्यं विविदथुस्तथा युवं न्यायार्कं प्राप्नुतं यथैतौ महान्ति कर्माणि कुरुतस्तथा वां तन्महि महित्वमस्ति तथा युवं महानि प्रथमानि चक्रथुः युवं यथैतौ विश्वा तमांसि हतस्तथाऽविद्याऽन्यायजनितानि पापान्यहतं स्वः प्राप्नुतं प्रापयेतं वा निदश्च सततं हन्यातम् ॥१॥

Word-Meaning: - (इन्द्रासोमा) विद्युच्चन्द्रमसौ (महि) महत् (तत्) (वाम्) युवयोः (महित्वम्) (युवम्) युवाम् (महानि) पूजनीयानि (प्रथमानि) ब्रह्मचर्यविद्याग्रहणदानादीनि (चक्रथुः) कुर्य्यातम् (युवम्) युवाम् (सूर्यम्) (विविदथुः) विन्दतः। अत्र व्यत्ययः। (युवम्) युवाम् (स्वः) सुखम् (विश्वा) सर्वाणि (तमांसि) रात्रिरिवाऽविद्यादीनि (अहतम्) हन्यातम् (निदः) निन्दकान् (च) पाखण्डिनः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे प्रजाजना यथा सूर्यं प्राप्य चन्द्रादयो लोकाः प्रकाशिता भवन्ति तथैवाध्यापकोपदेशकौ सङ्गत्य सर्वे प्रकाशमात्मानो भवन्तु ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, सोम, अध्यापक व उपदेशक यांच्या कामाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमलंकार आहे. हे प्रजाजनांनो ! जसे सूर्यामुळे चंद्र इत्यादी प्रकाशित होतात तसेच अध्यापक व उपदेशकांचा संग करून सर्वांचे आत्मे प्रकाशित व्हावेत. ॥ १ ॥