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उदु॒ ष्य दे॒वः स॑वि॒ता दमू॑ना॒ हिर॑ण्यपाणिः प्रतिदो॒षम॑स्थात्। अयो॑हनुर्यज॒तो म॒न्द्रजि॑ह्व॒ आ दा॒शुषे॑ सुवति॒ भूरि॑ वा॒मम् ॥४॥

English Transliteration

ud u ṣya devaḥ savitā damūnā hiraṇyapāṇiḥ pratidoṣam asthāt | ayohanur yajato mandrajihva ā dāśuṣe suvati bhūri vāmam ||

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Pad Path

उत्। ऊँ॒ इति॑। स्यः। दे॒वः। स॒वि॒ता। दमू॑नाः। हिर॑ण्यऽपाणिः। प्र॒ति॒ऽदो॒षम्। अ॒स्था॒त्। अयः॑ऽहनुः। य॒ज॒तः। म॒न्द्रऽजि॑ह्वः। आ। दा॒शुषे॑। सु॒व॒ति॒। भूरि॑। वा॒मम् ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:71» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (दमूनाः) दमनशील (हिरण्यपाणिः) सुवर्ण आदि हाथ में लिये हुए (अयोहनुः) लोहे के समान दृढ़ ठोढ़ी रखने और (यजतः) सङ्ग करनेवाला (मन्द्रजिह्वः) जिसकी आनन्द देनेवाली वाणी विद्यमान वह (सविता) ऐश्वर्य्यदाता और (देवः) सुख देनेहारा विद्वान् (प्रतिदोषम्) जैसे रात्रि-रात्रि के प्रति सूर्य्य उदय होता है, वैसे प्रजा पालन करने के लिये (उत, अस्थात्) उठता है तथा (दाशुषे) दान करनेवाले के लिये (भूरि) बहुत (वामम्) प्रशंसा योग्य कर्म के प्रति (आ, सुवति) उद्योग करने में प्रेरणा देता है (स्यः, उ) वही राजा होने को योग्य होता है ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे ईश्वर से नियुक्त किया सूर्यलोक प्रतिक्षण अपनी क्रिया को नही छोड़ता, वैसे ही जो राजा न्याय से राज्य पालने के लिये प्रतिक्षण उद्योग करता है, एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोता तथा सब मनुष्यों को उत्तम कर्मों के बीच आप वर्त्ताव कर उन्हें प्रेरणा देता है, वही शम-दम आदि शुभ गुणों से युक्त राजा होने योग्य है, यह सब जानें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो दमूना हिरण्यपाणिरयोहनुर्यजतो मन्द्रजिह्वः सविता देवः प्रतिदोषं सूर्य इव प्रजापालनायोदस्थाद्दाशुषे भूरि वाममा सुवति स्य उ राजा भवितुमर्हेत् ॥४॥

Word-Meaning: - (उत्) (उ) (स्यः) सः (देवः) सुखदाता विद्वान् (सविता) ऐश्वर्य्यप्रदः (दमूनाः) दमनशीलः (हिरण्यपाणिः) हिरण्यादिकं सुवर्णं पाणौ यस्य सः (प्रतिदोषम्) यथा रात्रिं रात्रिं प्रति सूर्यस्तथा (अस्थात्) उत्तिष्ठेत् (अयोहनुः) अयो लोहमिव दृढा हनुर्यस्य सः (यजतः) सङ्गन्ता (मन्द्रजिह्वः) मन्द्रा आनन्दप्रदा कमनीया जिह्वा वाणी यस्य सः (आ) (दाशुषे) दात्रे प्रजाजनाय (सुवति) उद्योगे प्रेरयति (भूरि) (वामम्) प्रशस्यं कर्म प्रति ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथेश्वरेण नियुक्तः सूर्य्यलोकः प्रतिक्षणं स्वक्रियां न जहाति तथैव यो राजा न्यायेन राज्यपालनाय प्रतिक्षणमुद्युक्तो भवत्येकक्षणमपि व्यर्थं न नयति सर्वान् मनुष्यानुत्तमेषु कर्मसु स्वयं वर्त्तित्वा प्रेरयति स एव शमदमादिशुभगुणाढ्यो राजा भवितुमर्हतीति सर्वे विजानन्तु ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ईश्वराने नियुक्त केलेला सूर्यलोक प्रतिक्षण आपले कार्य करतो, त्याचा त्याग करीत नाही. तसेच तो राजा न्यायाने राज्याचे पालन करण्यासाठी प्रतिक्षण उद्योग करतो. एकही क्षण व्यर्थ घालवीत नाही व स्वतःचे वर्तन चांगले ठेवून सर्व माणसांना प्रेरणा देतो तोच शम दम इत्यादी शुभ गुणांनी युक्त राजा होण्यायोग्य आहे, हे सर्वांनी जाणावे. ॥ ४ ॥