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दे॒वस्य॑ व॒यं स॑वि॒तुः सवी॑मनि॒ श्रेष्ठे॑ स्याम॒ वसु॑नश्च दा॒वने॑। यो विश्व॑स्य द्वि॒पदो॒ यश्चतु॑ष्पदो नि॒वेश॑ने प्रस॒वे चासि॒ भूम॑नः ॥२॥

English Transliteration

devasya vayaṁ savituḥ savīmani śreṣṭhe syāma vasunaś ca dāvane | yo viśvasya dvipado yaś catuṣpado niveśane prasave cāsi bhūmanaḥ ||

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Pad Path

दे॒वस्य॑। व॒यम्। स॒वि॒तुः। सवी॑मनि। श्रेष्ठे॑। स्या॒म॒। वसु॑नः। च॒। दा॒वने॑। यः। विश्व॑स्य। द्वि॒ऽपदः॑। यः। चतुः॑ऽपदः। नि॒ऽवेश॑ने। प्र॒ऽस॒वे। च॒। असि॑। भूम॑नः ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:71» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् राजा ! (यः) जो (द्विपदः) मनुष्यादि दो पगवाले जीव और (यः) जो (चतुष्पदः) गो आदि चार पगवाले पशु आदि जीवों के (भूमनः) बहुरूपी (विश्वस्य) समग्र संसार के (प्रसवे) उस उत्पन्न हुए स्थान में (निवेशने) जिसमें सब निवेश करते हैं अभिव्याप्त होकर विराजमान हैं, उस (सवितुः) सकल जगत् के उत्पन्न करनेवाले (देवस्य) अपने आप प्रकाशमान परमेश्वर के (श्रेष्ठे) प्रशंसित व्यवहार में (सवीमनि) उत्पन्न हुए जगत् में (वसुनः, च) धन के भी (दावने) देने में जैसे (वयम्) हम लोग उद्यत (स्याम) हों, वैसे तुम (च) भी जिस कारण (असि) हो, इससे यहाँ राजा होओ ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जैसे इस जगत् में जगदीश्वर अभिव्याप्त होकर सब की रक्षा करता है, वैसे ही इस जगत् में व्याप्त होकर विद्या और विनय से समस्त राज्य को पुत्र के समान पालो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् राजन् ! यो द्विपदो यश्चतुष्पदो भूमनो विश्वस्य प्रसवे निवेशनेऽभिव्याप्य विराजते तस्य सवितुर्देवस्य श्रेष्ठे सवीमनि वसुनश्च दावने यथा वयमुद्युक्ताः स्याम तथा त्वं यतश्चासि तस्मादत्र राजा भव ॥२॥

Word-Meaning: - (देवस्य) स्वप्रकाशस्य परमेश्वरस्य (वयम्) (सवितुः) सकलजगदुत्पादकस्य (सवीमनि) उत्पादिते जगति (श्रेष्ठे) व्यवहारे (स्याम) भवेम (वसुनः) धनस्य (च) (दावने) दाने (यः) (विश्वस्य) समग्रस्य (द्विपदः) मनुष्यादेः (यः) (चतुष्पदः) गवादेः (निवेशने) सर्वे निविशन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (प्रसवे) प्रसूते (च) (असि) (भूमनः) बहुरूपस्य ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वानो ! यथाऽत्र जगति जगदीश्वरोऽभिव्याप्य सर्वं रक्षति तथैवात्र व्याप्तो भूत्वा विद्याविनयाभ्यां सर्वं राष्ट्रं पुत्रवद्रक्षत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जसा या जगात जगदीश्वर अभिव्याप्त होऊन सर्वांचे रक्षण करतो तसेच या जगात विद्या व विनयाने संपूर्ण राज्याचे पुत्राप्रमाणे पालन करा. ॥ २ ॥