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इन्द्रा॑विष्णू मदपती मदाना॒मा सोमं॑ यातं॒ द्रवि॑णो॒ दधा॑ना। सं वा॑मञ्जन्त्व॒क्तुभि॑र्मती॒नां सं स्तोमा॑सः श॒स्यमा॑नास उ॒क्थैः ॥३॥

English Transliteration

indrāviṣṇū madapatī madānām ā somaṁ yātaṁ draviṇo dadhānā | saṁ vām añjantv aktubhir matīnāṁ saṁ stomāsaḥ śasyamānāsa ukthaiḥ ||

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Pad Path

इन्द्रा॑विष्णू॒ इति॑। म॒द॒प॒ती॒ इति॑ मदऽपती। म॒दा॒ना॒म्। आ। सोम॑म्। या॒त॒म्। द्रवि॑णो॒ इति॑। दधा॑ना। सम्। वा॒म्। अ॒ञ्ज॒न्तु॒। अ॒क्तुऽभिः॑। म॒ती॒नाम्। सम्। स्तोमा॑सः। श॒स्यमा॑नासः। उ॒क्थैः ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:69» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्राविष्णू) वायु और बिजुली के समान सभासेनापतियो ! (मदानाम्) आनन्दों के बीच (मदपती) आनन्द के पालने और (द्रविणो) धन वा यश के (दधाना) धारण करनेवालो ! तुम दोनों (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (आ, यातम्) प्राप्त होओ (वाम्) तुम दोनों को (मतीनाम्) मनुष्यों के बीच (अक्तुभिः) रात्रियों से और (उक्थैः) वेदस्थ स्तोत्रों से (शस्यमानासः) प्रशंसायुक्त किई जाती (स्तोमासः) स्तुतियाँ (सम, अञ्जन्तु) अच्छे प्रकार प्रकट करें, जिससे प्रीति के साथ तुम दोनों हम लोगों को (सम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो वायु और बिजुली के समान सब के आनन्द के बढ़ानेवाले, मनुष्यों से प्रशस्त किये जाते और विद्या वा धन को अच्छे प्रकार देते हुए प्रयत्न करते हैं, वे ही राजकर्म के योग्य होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्राविष्णू मदानां मदपती द्रविणो दधाना ! युवां सोममा यातं वां मतीनामक्तुभिरुक्थैश्शस्यमानासः स्तोमासो वां समञ्जन्तु येन प्रीत्या युवामस्मान् समायातम् ॥३॥

Word-Meaning: - (इन्द्राविष्णू) वायुविद्युताविव सभासेनेशौ (मदपती) आनन्दस्य पालकौ (मदानाम्) आनन्दानाम् (आ) (सोमम्) ऐश्वर्यम् (यातम्) गच्छतम् (द्रविणो) धनं यशो वा (दधाना) धरन्तौ (सम्) (वाम्) युवाम् (अञ्जन्तु) प्रकटीकुर्वन्तु (अक्तुभिः) रात्रिभिः (मतीनाम्) मनुष्याणाम् (सम्) (स्तोमासः) स्तुतयः (शस्यमानासः) प्रशंसिताः (उक्थैः) वेदस्थैः स्तोत्रैः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यौ वायुविद्युद्वत्सर्वेषामानन्दस्य वर्धकौ मनुष्यैः स्तूयमानौ विद्यां च प्रयच्छन्तौ प्रयतेते तावेव राजकर्माऽर्हतः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वायू व विद्युतप्रमाणे सर्वांचा आनंद वाढविणारे, माणसांकडून स्तुती केले जाणारे असतात व विद्या आणि धन चांगल्या प्रकारे देण्याचा प्रयत्न करतात तेच राजकर्म करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥