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इ॒यं मद्वां॒ प्र स्तृ॑णीते मनी॒षोप॑ प्रि॒या नम॑सा ब॒र्हिरच्छ॑। य॒न्तं नो॑ मित्रावरुणा॒वधृ॑ष्टं छ॒र्दिर्यद्वां॑ वरू॒थ्यं॑ सुदानू ॥२॥

English Transliteration

iyam mad vām pra stṛṇīte manīṣopa priyā namasā barhir accha | yantaṁ no mitrāvaruṇāv adhṛṣṭaṁ chardir yad vāṁ varūthyaṁ sudānū ||

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Pad Path

इ॒यम्। मत्। वा॒म्। प्र। स्तृ॒णी॒ते॒। म॒नी॒षा। उप॑। प्रि॒या। नम॑सा। ब॒र्हिः। अच्छ॑। य॒न्तम्। नः॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒। अधृ॑ष्टम्। छ॒र्दिः। यत्। वा॒म्। व॒रू॒थ्य॑म्। सु॒दा॒नू॒ इति॑ सुऽदानू ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:67» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुदानू) सुन्दर दान देनेवालो ! (प्रिया) मनोहर (मित्रावरुणौ) अध्यापक और उपदेशको ! (वाम्) तुम दोनों की (नमसा) सत्कार वा अन्नादिकों के साथ (इयम्) यह (मनीषा) विद्या और उत्तम शिक्षा युक्त बुद्धि (मत्) मुझ से (प्र, स्तृणीते) अच्छे प्रकार सर्व विषयों को आच्छादित करती है तथा (यत्) जो (वाम्) तुम दोनों के (वरूथ्यम्) घर के बीच उत्पन्न हुए (बर्हिः) अतीव विशाल तथा (अच्छ) अच्छे प्रकार (यन्तम्) प्राप्त होते हुए और (नः) हमारे (अधृष्टम्) शत्रुओं की न धृष्टता को प्राप्त हुए (छर्दिः) घर को (उप) समीप से ढाँपती है, वह सब को अच्छे प्रकार ग्रहण करने योग्य है ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिनके सङ्ग से हमको उत्तम बुद्धि और घर प्राप्त होते हैं, उनको सदैव तुम मानो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सुदानू प्रिया मित्रावरुणौ ! वां नमसेयं मनीषा मत्प्र स्तृणीते यद्वां वरूथ्यं बर्हिरच्छ यन्तं नोऽधृष्टं छर्दिरुप स्तृणीते सा सर्वैः सङ्ग्राह्या ॥२॥

Word-Meaning: - (इयम्) (मत्) मम सकाशात् (वाम्) युवयोः (प्र) (स्तृणीते) आच्छादयति प्राप्नोति वा (मनीषा) विद्यासुशिक्षायुक्ता प्रज्ञा (उप) (प्रिया) प्रियौ कमनीयौ (नमसा) सत्कारेणान्नाद्येन सह वा (बर्हिः) अतीव विशालम् (अच्छ) सम्यक् (यन्तम्) प्राप्नुवन्तम् (नः) अस्माकम् (मित्रावरुणौ) अध्यापकोपदेशकौ (अधृष्टम्) शत्रुभिरधर्षितम् (छर्दिः) गृहम् (यत्) (वाम्) युवयोः (वरूथ्यम्) वरूथे गृहे भवम् (सुदानू) शोभनानि दानानि ययोस्तौ ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ययोः सङ्गेनास्मानुत्तमे प्रज्ञागृहे प्राप्नुतस्तौ सदैव यूयं मन्यध्वम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्यांच्या संगतीने आपल्याला उत्तम बुद्धी व घरे प्राप्त होतात त्यांचा तुम्ही सदैव सन्मान करा. ॥ २ ॥