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वि यद्वाचं॑ की॒स्तासो॒ भर॑न्ते॒ शंस॑न्ति॒ के चि॑न्नि॒विदो॑ मना॒नाः। आद्वां॑ ब्रवाम स॒त्यान्यु॒क्था नकि॑र्दे॒वेभि॑र्यतथो महि॒त्वा ॥१०॥

English Transliteration

vi yad vācaṁ kīstāso bharante śaṁsanti ke cin nivido manānāḥ | ād vām bravāma satyāny ukthā nakir devebhir yatatho mahitvā ||

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Pad Path

वि। यत्। वाच॑म्। की॒स्तासः॑। भर॑न्ते। शंस॑न्ति। के। चि॒त्। नि॒ऽविदः॑। म॒ना॒नाः। आत्। वा॒म्। ब्र॒वा॒म॒। स॒त्यानि॑। उ॒क्था। नकिः॑। दे॒वेभिः॑। य॒त॒थः॒। म॒हि॒ऽत्वा ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:67» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन तिरस्कार करने योग्य और सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! यदि तुम दोनों (महित्वा) महिमा से (देवेभिः) विद्वानों के साथ विद्यावृद्धि के लिये (नकिः) न (यतथः) यत्न करते हो तो (वाम्) तुम दोनों के प्रति हम लोग (सत्यानि) उत्तम पदार्थों में भी उत्तम (उक्था) कहने वा सुनने के योग्य विषयों को (आत्, ब्रवाम) पीछे कहें (यत्) जो (कीस्तासः) मेधावीजन (वाचम्) वाणी को (वि, भरन्ते) विशेषता से धारण करते हैं और (के, चित्) कोई (मनानाः) विचार करते हुए (निविदः) उत्तम वाणियों की (शंसन्ति) प्रशंसा करते हैं, उनको सर्वदा तुम पढ़ाओ ॥१०॥
Connotation: - राजा और राजजनों और प्रजास्थ विद्वानों के द्वारा कौन विद्वान् अच्छी शिक्षा देने योग्य हैं, जो निष्कपटता से अपनी शक्ति के अनुकूल पढ़ाने से विद्या प्रचार न करें। और जो प्रीति के साथ विद्याओें को पाकर सर्वत्र प्रचार करते हैं, वे ही सदा सत्कार करने योग्य हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के तिरस्करणीयाः सत्कर्त्तव्याश्चेत्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! यदि युवां महित्वा देवेभिस्सह विद्यावृद्धये नकिर्यतथस्तर्हि वां सत्यान्युक्था आद् ब्रवाम यद्ये कीस्तासो वाचं वि भरन्ते के चिन्मनाना मननं कुर्वाणा निविदः शंसन्ति तान् सर्वदा युवां पाठयतम् ॥१०॥

Word-Meaning: - (वि) (यत्) ये (वाचम्) (कीस्तासः) मेधाविनः। कीस्तास इति मेधाविनाम। (निघं०३.१५) (भरन्ते) (शंसन्ति) (के) (चित्) अपि (निविदः) उत्तमा वाचः। निविदिति वाङ्नाम। (निघं०१.११) (मनानाः) मन्यमानाः (आत्) आनन्तर्ये (वाम्) युवाम् (ब्रवाम) अध्यापयेमोपदिशेम वा (सत्यानि) सत्सु अर्थेषु साधूनि (उक्था) वक्तुं श्रोतुमर्हाणि (नकिः) निषेधे (देवेभिः) विद्वद्भिः सह (यतथः) यतेथे। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम् (महित्वा) महिम्ना ॥१०॥
Connotation: - राज्ञा राजजनैः प्रजास्थैर्विद्वद्भिश्च के विद्वांसः प्रशासनीया ये निष्कपटत्वेन यथाशक्त्यध्यापनेन विद्याप्रचारं न कुर्य्युः। ये च प्रीत्या विद्याः प्राप्य सर्वत्र प्रचारयन्ति त एव सदैव सत्कर्त्तव्याः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा, राजजन व प्रजा यांनी ठरवावे की कोणते विद्वान प्रशंसनीय आहेत व कोणते निष्कपटीपणाने आपल्या शक्तिनुसार विद्येचा प्रचार करीत नाहीत व जे प्रेमाने विद्या प्राप्त करून प्रचार करतात तेच सदैव सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १० ॥