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प्र चि॒त्रम॒र्कं गृ॑ण॒ते तु॒राय॒ मारु॑ताय॒ स्वत॑वसे भरध्वम्। ये सहां॑सि॒ सह॑सा॒ सह॑न्ते॒ रेज॑ते अग्ने पृथि॒वी म॒खेभ्यः॑ ॥९॥

English Transliteration

pra citram arkaṁ gṛṇate turāya mārutāya svatavase bharadhvam | ye sahāṁsi sahasā sahante rejate agne pṛthivī makhebhyaḥ ||

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Pad Path

प्र। चि॒त्रम्। अ॒र्कम्। गृ॒ण॒ते। तु॒राय॑। मारु॑ताय। स्वऽत॑वसे। भ॒र॒ध्व॒म्। ये। सहां॑सि। सह॑सा। सह॑न्ते। रेज॑ते। अ॒ग्ने॒। पृ॒थि॒वी। म॒खेभ्यः॑ ॥९॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:66» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:8» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके लिये क्या धारण करके क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (ये) जो (सहसा) बल वा उत्साह से (सहांसि) बलों को (सहन्ते) सहते हैं उनके लिये तुम (चित्रम्) अद्भुत (अर्कम्) अन्न वा वज्र को (प्र, भरध्वम्) अच्छे प्रकार धारण करो, हे (अग्ने) विद्वन् ! जैसे (मखेभ्यः) सङ्ग्राम आदि जो सङ्ग करने करने योग्य हैं उनके लिये (पृथिवी) भूमि (रेजते) कम्पित होती है तथा (स्वतवसे) अपने बल से युक्त (तुराय) शीघ्रता करने और (मारुताय) मनुष्यों के सहयोगी (गृणते) स्तुति करनेवाले विद्वान् के लिये अद्भुत अन्न वा वज्र को धारण करो ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे चलती हुई भूमि यज्ञसामग्री को उत्पन्न करती है, वैसे ही बड़े-बड़े शूरवीर विद्वानों के लिये अन्नादि पदार्थ और अस्त्र-शस्त्र समूह तथा उनकी विद्या की निरन्तर उन्नति करो, ऐसा होने से योग्य शत्रुओं को सहने और पराजय करने का सामर्थ्य उत्पन्न होता है, यह जानो ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कस्मै किं धृत्वा किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! ये सहसा सहांसि सहन्ते तेभ्यो यूयं चित्रमर्कं प्र भरध्वम्। हे अग्ने विद्वन् ! यथा मखेभ्यः पृथिवी रेजते तथा स्वतवसे तुराय मारुताय गृणते विदुषे चित्रमर्कं भर ॥९॥

Word-Meaning: - (प्र) (चित्रम्) अद्भुतम् (अर्कम्) अन्नं वज्रं वा। अर्क इत्यन्ननाम। (निघं०२.७) वज्र नाम च। (निघं०२.२०) (गृणते) स्तुवते (तुराय) क्षिप्रकारिणे (मारुताय) मनुष्याणामस्मै (स्वतवसे) स्वं स्वकीयं तवो बलं यस्य तस्मै (भरध्वम्) (ये) (सहांसि) बलानि (सहसा) बलेनोत्साहेन वा (सहन्ते) (रेजते) कम्पते (अग्ने) विद्वन् (पृथिवी) भूमिः (मखेभ्यः) सङ्ग्रामादिभ्यः सङ्गन्तव्येभ्यः। मख इति यज्ञनाम। (निघं०३.१७) ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा चलन्ती भूमिर्यज्ञसामग्रीं जनयति तथैव महद्भ्यः शूरवीरेभ्यो विद्वद्भ्योऽन्नादिकं शस्त्रास्त्रसमूहं च तद्विद्यां च सततमुन्नयतैवं सत्यसह्यानपि शत्रून् सोढुं पराजेतुं वा सामर्थ्यं जायत इति वित्त ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशी गतिमान भूमी यज्ञ सामग्री उत्पन्न करते तसे शूरवीरांसाठी अन्न इत्यादी पदार्थ व अस्त्र-शस्त्र समूह व त्यांची विद्या सतत वाढवा. त्यामुळे शत्रूंना सहन करण्याचे व पराजित करण्याचे सामर्थ्य उत्पन्न होते हे जाणा. ॥ ९ ॥