भ॒द्रा द॑दृक्ष उर्वि॒या वि भा॒स्युत्ते॑ शो॒चिर्भा॒नवो॒ द्याम॑पप्तन्। आ॒विर्वक्षः॑ कृणुषे शु॒म्भमा॒नोषो॑ देवि॒ रोच॑माना॒ महो॑भिः ॥२॥
bhadrā dadṛkṣa urviyā vi bhāsy ut te śocir bhānavo dyām apaptan | āvir vakṣaḥ kṛṇuṣe śumbhamānoṣo devi rocamānā mahobhiḥ ||
भ॒द्रा। द॒दृ॒क्षे॒। उ॒र्वि॒या। वि। भा॒सि॒। उत्। ते॒। शो॒चिः। भा॒नवः॑। द्याम्। अ॒प॒प्त॒न्। आ॒विः। वक्षः॑। कृ॒णु॒षे॒। शु॒म्भमा॑ना। उषः॑। दे॒वि॒। रोच॑माना। महः॑ऽभिः ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसी हो, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सा कीदृशी भवेदित्याह ॥
हे उषर्वद्वर्त्तमाने देवि ! यतस्त्वं भद्रा दृदृक्ष उर्विया सती गृहकृत्यान्युद्वि भासि यस्यास्ते शोचिर्भानवो द्यामपप्तन्निव वक्ष आविष्कृणुषे महोभिः शुम्भमाना रोचमाना सती सुखं प्रयच्छसि तस्मात् संपूज्यासि ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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