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अधि॑ श्रि॒ये दु॑हि॒ता सूर्य॑स्य॒ रथं॑ तस्थौ पुरुभुजा श॒तोति॑म्। प्र मा॒याभि॑र्मायिना भूत॒मत्र॒ नरा॑ नृतू॒ जनि॑मन्य॒ज्ञिया॑नाम् ॥५॥

English Transliteration

adhi śriye duhitā sūryasya rathaṁ tasthau purubhujā śatotim | pra māyābhir māyinā bhūtam atra narā nṛtū janiman yajñiyānām ||

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Pad Path

अधि॑। श्रि॒ये। दु॒हि॒ता। सूर्य॑स्य। रथ॑म्। त॒स्थौ॒। पु॒रु॒ऽभु॒जा॒। श॒तऽऊ॑तिम्। प्र। मा॒याभिः॑। मा॒यि॒ना॒। भू॒त॒म्। अत्र॑। नरा॑। नृ॒तू॒ इति॑। जनि॑मन्। य॒ज्ञिया॑नाम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:63» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किसके समान कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मायिना) प्राज्ञ (पुरुभुजा) बहुतों की पालना करनेवाले (नृतू) अग्रगन्ता (नरा) नायक राजसभा-सेनाधीशो ! तुम (मायाभिः) बुद्धियों से (अत्र) इस (यज्ञियानाम्) सत्सङ्गति के योग्य मनुष्यों के (जनिमन्) जन्म में जैसे (सूर्य्यस्य) सूर्य की (दुहिता) पुत्री के समान उषा (शतोतिम्) जिससे सैकड़ों रक्षायें होती उस (रथम्) रमणीय किरण के (अधि, तस्थौ) ऊपर स्थित होती, वैसे (श्रिये) शोभा वा लक्ष्मी के लिये (प्र, भूतम्) समर्थ होओ ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो उषा के समान यानादि साधनों से राज्यश्री की प्राप्ति के लिये विद्वानों के विद्याजन्म को कराते हैं, वे असङ्ख्य रक्षा को प्राप्त होके इस जगत् में अधिष्ठाता होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ किंवत्कीदृशौ भवेतामित्याह ॥

Anvay:

हे मायिना पुरुभुजा नृतू नरा राजसभासेनेशौ ! युवां मायाभिरत्र यज्ञियानां जनिमन् यथा सूर्य्यस्य दुहिता शतोतिं रथमधि तस्थौ तथा श्रिये प्र भूतम् ॥५॥

Word-Meaning: - (अधि) उपरि (श्रिये) शोभायै लक्ष्म्यै वा (दुहिता) दुहिते वोषा (सूर्य्यस्य) (रथम्) रमणीयं किरणम् (तस्थौ) तिष्ठति। (पुरुभुजा) बहूनां पालकौ (शतोतिम्) शतान्यूतयो येन तम् (प्र) (मायाभिः) प्रज्ञाभिः (मायिना) प्राज्ञौ (भूतम्) भवेतम् (अत्र) अस्मिन् (नरा) नायकौ (नृतू) नेतारौ (जनिमन्) जन्मनि (यज्ञियानाम्) सत्सङ्गतिमर्हाणाम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य उषर्वद् यानादिसाधनै राज्यश्रीप्राप्तये विदुषां विद्याजन्मानि कारयन्ति तेऽसङ्ख्यां रक्षां प्राप्यात्र जगत्यधिष्ठातारो जायन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे तेजस्वी उषेप्रमाणे यान इत्यादी साधनांनी राज्यश्रीच्या प्राप्तीसाठी विद्वानांकडून विद्याजन्म प्राप्त करून घेतात त्यांचे अखंड रक्षण होते व ते या जगाचे अधिष्ठाते बनतात. ॥ ५ ॥