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वि ज॒युषा॑ रथ्या यात॒मद्रिं॑ श्रु॒तं हवं॑ वृषणा वध्रिम॒त्याः। द॒श॒स्यन्ता॑ श॒यवे॑ पिप्यथुर्गामिति॑ च्यवाना सुम॒तिं भु॑रण्यू ॥७॥

English Transliteration

vi jayuṣā rathyā yātam adriṁ śrutaṁ havaṁ vṛṣaṇā vadhrimatyāḥ | daśasyantā śayave pipyathur gām iti cyavānā sumatim bhuraṇyū ||

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Pad Path

वि। ज॒युषा॑। र॒थ्या॒। या॒त॒म्। अद्रि॑म्। श्रु॒तम्। हव॑म्। वृ॒ष॒णा॒। व॒ध्रि॒ऽम॒त्याः। द॒श॒स्यन्ता॑। श॒यवे॑। पि॒प्य॒थुः॒। गाम्। इति॑। च्य॒वा॒ना॒। सु॒ऽम॒तिम्। भु॒र॒ण्यू॒ इति॑ ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:62» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उनसे क्या होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशक सज्जनो ! (वध्रिमत्याः) जिसमें बहुत वर्धन विद्यमान उस भूमि वा अन्तरिक्ष के बीच (जयुषा) जयशील (रथ्या) रथ के लिये हितकारी (वृषणा) वर्षा तथा (दशस्यन्ता) बल करानेवाले (अद्रिम्) मेघ को (वि, यातम्) विशेषता से प्राप्त होते हैं और (सुमतिम्) सुन्दर मति को (च्यवाना) शीघ्र जानेवाले (भुरण्यू) पालना वा धारणकर्त्ता (गाम्) वाणी को (इति) इस प्रकार से (शयवे) सोने के लिये (पिप्यथुः) बढ़ाते हैं, उनके (हवम्) विद्या विषयक शब्द को तुम (श्रुतम्) सुनो ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो विमान आदि को चलाने वा सङ्ग्राम में जय कराने वा प्रज्ञा और बल के देने, वर्षा करनेवाले तथा सोने जागने और वाणी के हेतु हैं, उनको जान कार्य्यसिद्धि के लिये अच्छे प्रकार प्रयोग करो ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ताभ्यां किं भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! वध्रिमत्या भूमेर्मध्ये जयुषा रथ्या वृषणा दशस्यन्ताऽद्रिं वि यातं सुमतिं च्यवाना भुरण्यू गामिति शयवे पिप्यथुस्तयोर्हवं युवां श्रुतम् ॥७॥

Word-Meaning: - (वि) (जयुषा) जयशीलौ (रथ्या) रथाय हितौ (यातम्) यातः। अत्र व्यत्ययः (अद्रिम्) मेघम् (श्रुतम्) अशृणुतम् (हवम्) विद्याविषयं शब्दम् (वृषणा) वर्षयितारौ (वध्रिमत्याः) बहवो वध्रयो वर्धनानि विद्यन्ते यस्यां तस्या भूमेरन्तरिक्षस्य वा (दशस्यन्ता) बलयन्तौ (शयवे) शयनाय (पिप्यथुः) वर्धयतः (गाम्) वाचम् (इति) अनेन प्रकारेण (च्यवाना) सद्यो गन्तारौ (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (भुरण्यू) पोषयितारौ धारकौ वा ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यौ विमानादिगमयितारौ सङ्ग्रामे जयकारिणौ प्रज्ञाबलप्रदौ वृष्टिकरौ शयनजागरणवाग्घेतू वर्त्तेते तौ बुद्ध्वा कार्यसिद्धये सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे विमान इत्यादी चालविणे, युद्धात जय करविणे, बुद्धी व बल देणे, वृष्टी करणे, निद्रा, जागरण व वाणी यांचे हेतू आहेत त्यांना जाणून कार्यसिद्धीसाठी चांगला प्रयोग करा. ॥ ७ ॥