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आ प॑र॒माभि॑रु॒त म॑ध्य॒माभि॑र्नि॒युद्भि॑र्यातमव॒माभि॑र॒र्वाक्। दृ॒ळ्हस्य॑ चि॒द्गोम॑तो॒ वि व्र॒जस्य॒ दुरो॑ वर्तं गृण॒ते चि॑त्रराती ॥११॥

English Transliteration

ā paramābhir uta madhyamābhir niyudbhir yātam avamābhir arvāk | dṛḻhasya cid gomato vi vrajasya duro vartaṁ gṛṇate citrarātī ||

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Pad Path

आ। प॒र॒माभिः॑। उ॒त। म॒ध्य॒माभिः॑। नि॒युत्ऽभिः॑। या॒त॒म्। अ॒व॒माभिः॑। अ॒र्वाक्। दृ॒ळ्हस्य॑। चि॒त्। गोऽम॑तः। वि। व्र॒जस्य॑। दुरः॑। व॒र्त॒म्। गृ॒ण॒ते। चि॒त्र॒रा॒ती॒ इति॑ चित्रऽराती ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:62» Mantra:11 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (चित्रराती) अद्भुत दानवाले सभासेनाधीशो ! तुम (अवमाभिः) निकृष्ट (मध्यमाभिः) मध्यम (उत) और (परमाभिः) उत्तम (नियुद्भिः) वायु की गतियों से (आ, यातम्) आओ तथा (अर्वाक्) पीछे (दृळ्हस्य) अति पुष्ट के (चित्) भी (गोमतः) बहुत गौयें वा किरणें जिसमें विद्यमान उस (वज्रस्य) मेघ के (दुरः) द्वारों को (गृणते) स्तुति करनेवाले के लिये (वि, वर्त्तम्) विशेषता से वर्त्ताओ ॥११॥
Connotation: - हे राज प्रजाजनो ! जैसे सब भूगोल वायु की गतियों के साथ जाते-आते हैं और जैसे शिल्पीजन विमान से मेघमण्डल पर जाते हैं, वैसे ही तुम भी अनुष्ठान करो ॥११॥ इस सूक्त में अश्वियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह बासठवाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे चित्रराती सभासेनेशौ ! युवामवमाभिर्मध्यमाभिरुत परमाभिर्नियुद्भिरा यातमर्वाग् दृळ्हस्य चिद् गोमतो व्रजस्य दुरो गृणते वि वर्त्तम् ॥११॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (परमाभिः) उत्कृष्टाभिः (उत) (मध्यमाभिः) मध्ये भवाभिः (नियुद्भिः) वायोर्गतिभिः (यातम्) गच्छतम् (अवमाभिः) निकृष्टाभिः (अर्वाक्) पश्चात् (दृळ्हस्य) (चित्) अपि (गोमतः) बह्व्यो गावः किरणा वा विद्यन्ते यस्मिंस्तस्य (वि) (व्रजस्य) मेघस्य (दुरः) द्वाराणि (वर्त्तम्) वर्त्तयतम् (गृणते) स्तावकाय (चित्रराती) चित्राऽद्भुता रातिर्दानं ययोस्तौ ॥११॥
Connotation: - हे राजप्रजाजना यथा सर्वे भूगोला वायुगतिभिस्सह गच्छन्त्यागच्छन्ति यथा च शिल्पिनो विमानेन मेघमण्डलोपरि व्रजन्ति तथैव यूयमप्यनुतिष्ठतेति ॥११॥ अत्राश्विगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विषष्टितमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा व प्रजाजनहो ! जसे सर्व भूगोल वायूच्या गतीबरोबर फिरत असतात व जसे शिल्पीजन (कारागीर) विमानाने मेघमंडळातून जातात तसे तुम्हीही वागा. ॥ ११ ॥