आ प॑र॒माभि॑रु॒त म॑ध्य॒माभि॑र्नि॒युद्भि॑र्यातमव॒माभि॑र॒र्वाक्। दृ॒ळ्हस्य॑ चि॒द्गोम॑तो॒ वि व्र॒जस्य॒ दुरो॑ वर्तं गृण॒ते चि॑त्रराती ॥११॥
ā paramābhir uta madhyamābhir niyudbhir yātam avamābhir arvāk | dṛḻhasya cid gomato vi vrajasya duro vartaṁ gṛṇate citrarātī ||
आ। प॒र॒माभिः॑। उ॒त। म॒ध्य॒माभिः॑। नि॒युत्ऽभिः॑। या॒त॒म्। अ॒व॒माभिः॑। अ॒र्वाक्। दृ॒ळ्हस्य॑। चि॒त्। गोऽम॑तः। वि। व्र॒जस्य॑। दुरः॑। व॒र्त॒म्। गृ॒ण॒ते। चि॒त्र॒रा॒ती॒ इति॑ चित्रऽराती ॥११॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्ते किं कुर्य्युरित्याह ॥
हे चित्रराती सभासेनेशौ ! युवामवमाभिर्मध्यमाभिरुत परमाभिर्नियुद्भिरा यातमर्वाग् दृळ्हस्य चिद् गोमतो व्रजस्य दुरो गृणते वि वर्त्तम् ॥११॥
MATA SAVITA JOSHI
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