आ नो॒ गव्ये॑भि॒रश्व्यै॑र्वस॒व्यै॒३॒॑रुप॑ गच्छतम्। सखा॑यौ दे॒वौ स॒ख्याय॑ शं॒भुवे॑न्द्रा॒ग्नी ता ह॑वामहे ॥१४॥
ā no gavyebhir aśvyair vasavyair upa gacchatam | sakhāyau devau sakhyāya śambhuvendrāgnī tā havāmahe ||
आ। नः॒। गव्ये॑भिः। अश्व्यैः॑। व॒स॒व्यैः॑। उप॑। ग॒च्छ॒त॒म्। सखा॑यौ। दे॒वौ। स॒ख्याय॑। श॒म्ऽभुवा॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। ता। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को किन के साथ मित्रता करनी चाहिये, इस विषयको कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः कैः सह मित्रता कार्येत्याह ॥
हे अध्यापकोपदेशकविन्द्राग्नी इव वर्त्तमानौ शम्भुवा देवौ सखायौ नः सख्याय गव्येभिरश्व्यैर्वसव्यैः सह वर्त्तमानौ युवां वयं हवामहे ता युवामस्मानुपाऽऽगच्छतम् ॥१४॥
MATA SAVITA JOSHI
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