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ये के च॒ ज्मा म॒हिनो॒ अहि॑माया दि॒वो ज॑ज्ञि॒रे अ॒पां स॒धस्थे॑। ते अ॒स्मभ्य॑मि॒षये॒ विश्व॒मायुः॒ क्षप॑ उ॒स्रा व॑रिवस्यन्तु दे॒वाः ॥१५॥

English Transliteration

ye ke ca jmā mahino ahimāyā divo jajñire apāṁ sadhasthe | te asmabhyam iṣaye viśvam āyuḥ kṣapa usrā varivasyantu devāḥ ||

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Pad Path

ये। के। च॒। ज्मा। म॒हिनः॑। अहि॑ऽमायाः। दि॒वः। ज॒ज्ञि॒रे। अ॒पाम्। स॒धऽस्थे॑। ते। अ॒स्मभ्य॑म्। इ॒षये॑। विश्व॑म्। आयुः॑। क्षपः॑। उ॒स्राः। व॒रि॒व॒स्य॒न्तु॒। दे॒वाः ॥१५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:15 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों से कौन नित्य सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (ये) जो (के, च) कोई भी (महिनः) महान् जैसे (ज्मा) पृथिवी के बीच (अहिमायाः) मेघ की कुटिल गतियाँ (दिवः) सूर्य्य के प्रकाश से (अपाम्) जलों के (सधस्थे) समानस्थानवाले मेघमण्डल में (जज्ञिरे) उत्पन्न होती हैं, वैसे वर्त्तमान (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (इषये) अन्न वा विज्ञान के अर्थ (क्षपः) रात्रि (उस्राः) दिन और (विश्वम्) पूर्ण (आयुः) जीवन को (वरिवस्यन्तु) सेवें (ते) वे (देवाः) दिव्यगुण वा विद्वान् जन हम लोगों से निरन्तर सेवने योग्य हैं ॥१५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो इस वर्त्तमान समय में दिन-रात्रि मनुष्यों के आरोग्य, आयु और विज्ञान के बढ़ाने और मेघ के समान पुष्टि करनेवाले हों, वे ही सब से सत्कार करने योग्य हैं ॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः के नित्यं सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये के च महिनो यथा ज्माऽहिमाया दिवोऽपां सधस्थे जज्ञिरे तथा वर्त्तमाना अस्मभ्यमिषये क्षप उस्रा विश्वमायुर्वरिवस्यन्तु ते देवा अस्माभिः सततं सेवनीयाः ॥१५॥

Word-Meaning: - (ये) (के) (च) केचित् (ज्मा) पृथिव्या मध्ये (महिनः) महान्तः (अहिमायाः) मेघस्य मायाः कुटिलगतयः (दिवः) सूर्यप्रकाशात् (जज्ञिरे) जायन्ते (अपाम्) जलानाम् (सधस्थे) समानस्थाने मेघमण्डले (ते) (अस्मभ्यम्) (इषये) विज्ञानायाऽन्नाय वा (विश्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (क्षपः) रात्रीः (उस्राः) दिनानि (वरिवस्यन्तु) सेवन्ताम् (देवाः) दिव्यगुणा विद्वांसः ॥१५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! येऽत्र वर्त्तमानसमयेऽहर्निशं मनुष्याणामारोग्यायुर्विज्ञानवर्धकाः पर्जन्य इव पोषकाः स्युस्त एव सर्वैः सत्कर्त्तव्या भवन्तु ॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो जे रात्रंदिवस माणसांचे आरोग्य, आयु, विज्ञान वाढविणारे व मेघाप्रमाणे पुष्टी करणारे असतील त्यांचाच सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ १५ ॥