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विश्वे॑ दे॒वा मम॑ शृण्वन्तु य॒ज्ञिया॑ उ॒भे रोद॑सी अ॒पां नपा॑च्च॒ मन्म॑। मा वो॒ वचां॑सि परि॒चक्ष्या॑णि वोचं सु॒म्नेष्विद्वो॒ अन्त॑मा मदेम ॥१४॥

English Transliteration

viśve devā mama śṛṇvantu yajñiyā ubhe rodasī apāṁ napāc ca manma | mā vo vacāṁsi paricakṣyāṇi vocaṁ sumneṣv id vo antamā madema ||

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Pad Path

विश्वे॑। दे॒वाः। मम॑। शृ॒ण्व॒न्तु॒। य॒ज्ञियाः॑। उ॒भे इति॑। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒पाम्। नपा॑त्। च॒। मन्म॑। मा। वः॒। वचां॑सि। प॒रि॒ऽचक्ष्या॑णि। वो॒च॒म्। सु॒म्नेषु॑। इत्। वः॒। अन्त॑माः। म॒दे॒म॒ ॥१४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:14 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन सङ्ग करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (विश्वे, देवाः) सब विद्वानो ! आप (उभे) दोनों (रोदसी) आकाश और पृथिवी के तुल्य सब की रक्षा करनेवाले (यज्ञियाः) सज्जनों का सङ्ग करनेवाले होते हुए (मम) मेरे (वचांसि) वचनों को (शृण्वन्तु) सुनिये तथा (वः) आपके (अपाम्) प्राणों के (नपात्) न विनाश करनेवाले (मन्म) विज्ञान को, विरुद्ध मैं (मा, वोचम्) मत कहूँ (परिचक्ष्याणि, च) और सब ओर से कहने के योग्यों की प्रशंसा करूँ, इस प्रकार वर्त्तमान हम लोग (वः) आपके (अन्तमाः) समीप स्थिर होते हुए (सुम्नेषु) सुखों में (इत्) सर्वदैव (मदेम) आनन्दित हों ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जिन विद्वानों का वचन असत्य नहीं होता तथा जिनका सङ्ग सर्वदा सुख और विज्ञान का बढ़ानेवाला है और जो भूमि और सूर्य के तुल्य सब के पालनेवाले और विवाद सुनकर पक्षपात को छोड़ न्याय करनेवाले हों, उनके निकट स्थित होकर सदैव आनन्द को प्राप्त होओ ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के सङ्गन्तुमर्हा इत्याह ॥

Anvay:

हे विश्वे देवा ! भवन्त उभे रोदसी इव यज्ञियाः सन्तो मम वचांसि शृण्वन्तु वोऽपां नपान्मन्म विरुद्धमहं मा वोचं परिचक्ष्याणि च प्रशंसेयमेवं वर्त्तमाना वयं वोऽन्तमाः सन्तः सुम्नेषु सदेन्मदेम ॥१४॥

Word-Meaning: - (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (मम) (शृण्वन्तु) (यज्ञियाः) ये सत्सङ्गतिं कर्त्तुमर्हाः (उभे) (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव सर्वेषां रक्षकाः (अपाम्) प्राणानाम् (नपात्) अनाशकम् (च) (मन्म) विज्ञानम् (मा) (वः) युष्माकम् (वचांसि) वचनानि (परिचक्ष्याणि) परितः सर्वतः ख्यातुं योग्यानि (वोचम्) (सुम्नेषु) सुखेषु (इत्) एव (वः) युष्माकम् (अन्तमाः) समीपस्थाः (मदेम) आनन्देम ॥१४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! येषां विदुषां वचनं वितथं न भवति येषां सङ्गः सर्वदा सुखविज्ञानवर्धको ये भूमिसूर्य्यवत्सर्वेषां पालका विवादं श्रुत्वा पक्षपातं विहाय न्यायकर्त्तारस्स्युस्तत्सन्निधौ स्थित्वा सदैवाऽऽनन्दं प्राप्नुवन्तु ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या विद्वानांचे वचन असत्य नसते व ज्यांचा संग सदैव सुख व विज्ञान वाढविणारा असतो व जे सूर्याप्रमाणे सर्वांचे पालनकर्ते व विवाद ऐकून भेदभाव न करता न्याय करणारे असतात त्यांच्याजवळ राहून सदैव आनंद प्राप्त करा. ॥ १४ ॥