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ते हि श्रेष्ठ॑वर्चस॒स्त उ॑ नस्ति॒रो विश्वा॑नि दुरि॒ता नय॑न्ति। सु॒क्ष॒त्रासो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निर्ऋ॒तधी॑तयो वक्म॒राज॑सत्याः ॥१०॥

English Transliteration

te hi śreṣṭhavarcasas ta u nas tiro viśvāni duritā nayanti | sukṣatrāso varuṇo mitro agnir ṛtadhītayo vakmarājasatyāḥ ||

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Pad Path

ते। हि। श्रेष्ठ॑ऽवर्चसः। ते। ऊँ॒ इति॑। नः॒। ति॒रः। विश्वा॑नि। दुः॒ऽइ॒ता। नय॑न्ति। सु॒ऽक्ष॒त्रासः॑। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒ग्निः। ऋ॒तऽधी॑तयः। व॒क्म॒राज॑ऽसत्याः ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:51» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (हि) जिससे (ते) वे (श्रेष्ठवर्चसः) श्रेष्ठ पढ़नेवाले (सुक्षत्रासः) उत्तम राज्य वा धनयुक्त (वरुणः) श्रेष्ठ जन (मित्रः) मित्र (अग्निः) अग्नि के समान शुद्धान्तःकरण पुरुष, इनके समान वर्त्तमान (ऋतधीतयः) सत्य के धारण करनेवाले (वक्मराजसत्याः) कहनेवाले राजाओं में सत्य के प्रतिपादन करनेवाले सज्जन (नः) हम लोगों के (विश्वानि) समस्त (दुरिता) दुष्टाचरणों को (तिरः) तिरस्कार को (नयन्ति) पहुँचाते हैं उस कारण से (उ) ही (ते) वे मान करने योग्य हैं ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिससे विद्वान् धर्मात्मा जन निष्कपटता से औरों के हित साधनेवाले, विद्यादान और उपदेश द्वारा सब दुष्ट आचरणों को निवार के सत्य आचरण में प्रवृत्त करनेवाले हैं, इसी से सत्कार करने योग्य हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! हि यतस्ते श्रेष्ठवर्चसः सुक्षत्रासो वरुणो मित्रोऽग्निश्चेव वर्त्तमाना ऋतधीतयो वक्मराजसत्या नो विश्वानि दुरिता तिरो नयन्ति तस्मादु ते माननीयाः सन्ति ॥१०॥

Word-Meaning: - (ते) (हि) यतः (श्रेष्ठवर्चसः) श्रेष्ठं वर्चोऽध्ययनं येषान्ते (ते) तव (उ) (नः) अस्माकम् (तिरः) तिरस्करणे (विश्वानि) सर्वाणि (दुरिता) दुष्टाचरणानि (नयन्ति) (सुक्षत्रासः) उत्तमराज्यधनाः (वरुणः) श्रेष्ठः (मित्रः) सुहृत् (अग्निः) पावक इव शुद्धान्तःकरणः (ऋतधीतयः) सत्यधारकाः (वक्मराजसत्याः) वक्मेषु वक्तृषु राजसु सत्यप्रतिपादकाः ॥१०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यस्माद्विद्वांसो धर्मात्मानो निष्कपटत्वेनाऽन्येषां हितसाधका विद्यादानोपदेशद्वारा सर्वान् दुष्टाचारान्निवार्य सत्याचारे प्रवर्त्तकाः सन्ति तस्मादेव सत्कर्त्तव्या वर्त्तन्ते ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा विद्वान धर्मात्मा लोक निष्कपटीपणाने इतरांचे हित साधणारे, विद्यादान व उपदेशाद्वारे सर्व दुष्ट आचरणाचे निवारण करून सत्याचरणात प्रवृत्त करणारे असतात तेव्हा ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १० ॥