पावी॑रवी क॒न्या॑ चि॒त्रायुः॒ सर॑स्वती वी॒रप॑त्नी॒ धियं॑ धात्। ग्नाभि॒रच्छि॑द्रं शर॒णं स॒जोषा॑ दुरा॒धर्षं॑ गृण॒ते शर्म॑ यंसत् ॥७॥
pāvīravī kanyā citrāyuḥ sarasvatī vīrapatnī dhiyaṁ dhāt | gnābhir acchidraṁ śaraṇaṁ sajoṣā durādharṣaṁ gṛṇate śarma yaṁsat ||
पावी॑रवी। क॒न्या॑। चि॒त्रऽआ॑युः। सर॑स्वती। वी॒रऽप॑त्नी। धिय॑म्। धा॒त्। ग्नाभिः॑। अच्छि॑द्रम्। श॒र॒णम्। स॒ऽजोषाः॑। दुः॒ऽआ॒धर्ष॑म्। गृ॒ण॒ते। शर्म॑। यं॒स॒त् ॥७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर कैसी स्त्री सुख देवे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः कीदृशी स्त्री सुखं दद्यादित्याह ॥
हे मनुष्या ! या पावीरवी चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी कन्या ग्नाभिर्धियं धाद्या गृणते मेऽच्छिद्रं या सजोषाः सती गृणते मे शरणं दुराधर्षं शर्म यंसत्सैव मया सदैव सत्कर्त्तव्या ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
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