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अ॒रु॒षस्य दुहि॒तरा॒ विरू॑पे॒ स्तृभि॑र॒न्या पि॑पि॒शे सूरो॑ अ॒न्या। मि॒थस्तुरा॑ वि॒चर॑न्ती पाव॒के मन्म॑ श्रु॒तं न॑क्षत ऋ॒च्यमा॑ने ॥३॥

English Transliteration

aruṣasya duhitarā virūpe stṛbhir anyā pipiśe sūro anyā | mithasturā vicarantī pāvake manma śrutaṁ nakṣata ṛcyamāne ||

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Pad Path

अ॒रु॒षस्य॑। दु॒हि॒तरा॑। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। स्तृऽभिः॑। अ॒न्या। पि॒पि॒शे। सूरः॑। अ॒न्या। मि॒थः॒ऽतुरा॑। वि॒चर॑न्ती॒ इति॑ वि॒ऽचर॑न्ती। पा॒व॒के इति॑। मन्म॑। श्रु॒तम्। न॒क्ष॒त॒। ऋ॒च्यमा॑ने॒ इति॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब स्त्री-पुरुष कैसे होकर कैसे वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे स्त्री पुरुषो वा राजा और प्रजाजनो ! जैसे (अरुषस्य) कुछ लालरंगवाले अग्नि के (विरूपे) विविधरूप वा विरुद्धस्वरूपयुक्त दिन और रात्रि (मिथस्तुरा) परस्पर हिंसा करनेवाले (विचरन्ती) विविध गति से प्राप्त होते हुए (ऋच्यमाने) स्तूयमान (पावके) पवित्र (दुहितरा) कन्याओं के समान वर्तमान हैं उनमें (अन्या) और अर्थात् दोनों से अलग रात्रिरूप कन्या (स्तृभिः) नक्षत्रादिकों के साथ (पिपिशे) पीसती हुई अङ्ग के समान वर्त्तमान है (अन्या) और दिनरूप कन्या अर्थात् (सूरः) सूर्य्य किरणों से पीसती हुई वर्त्तमान है, वे दोनों समस्त जगत् को (नक्षतः) व्याप्त होते हैं, वैसे मिलकर प्रीति से (श्रुतम्) श्रवण वा (मन्म) विज्ञान को तुम दोनों प्राप्त होओ ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्यरूप अग्नि के रात्रि-दिन पुत्री के समान वर्त्तमान हैं तथा दोनों विलक्षण सदा सम्बन्ध करनेवाले होते हैं, वैसे ही विचित्र वस्त्र और आभूषणवाले, विविध विद्यायुक्त और प्रशंसित होते हुए विद्या विज्ञान और धर्मोन्नति में सम्बन्ध और प्रीति करनेवाले स्त्री-पुरुष हों ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ स्त्रीपुरुषौ कीदृशौ भूत्वा कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥

Anvay:

हे स्त्रीपुरुषौ राजप्रजे वा ! यथाऽरुषस्य विरूपे मिथस्तुरा विचरन्ती ऋच्यमाने पावके दुहितरेव वर्त्तते तयोरन्या रात्रिः स्तृभिः पिपिशेऽन्या सूरः किरणैः पिपिशे सर्वं जगन्नक्षतस्तथा संधितौ भूत्वा प्रीत्या श्रुतं मन्म युवां प्राप्नुयाताम् ॥३॥

Word-Meaning: - (अरुषस्य) आरक्तगुणस्याग्नेः (दुहितरा) कन्ये इव वर्त्तमाने (विरूपे) विविधरूपे विरुद्धरूपे वाऽहोरात्रे (स्तृभिः) नक्षत्रादिभिः (अन्या) द्वयोर्भिन्ना (पिपिशे) पिनष्ट्यवयव इव वर्त्तते (सूरः) सूर्य्यः (अन्या) दिनाख्या (मिथस्तुरा) मिथोहिंसके (विचरन्ती) विविधगत्या प्राप्नुवन्ती (पावके) पवित्रे (मन्म) विज्ञानम् (श्रुतम्) (नक्षतः) व्याप्नुतः (ऋच्यमाने) स्तूयमाने ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यरूपस्याग्ने रात्रिदिने पुत्रीवद्वर्त्तेते तथा द्वे विलक्षणे सदा सम्बद्धे च भवतस्तथैव विचित्रवस्त्राभरणौ विविधविद्याढ्यौ प्रशंसितौ सन्तौ विद्याविज्ञानधर्म्मोन्नतिसम्बद्धप्रीती स्त्रीपुरुषौ भवेताम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्यरूपी अग्नीचे रात्र व दिवस कन्येप्रमाणे असतात व दोन्ही विलक्षणरीत्या सदैव संबंधित असतात तसेच स्त्री-पुरुषही भिन्न भिन्न वस्त्र व अलंकार घालणारे, विविध विद्यायुक्त व प्रशंसित असणारे, विद्या विज्ञान धर्माची उन्नती करणारे, प्रेम करणारे असावेत. ॥ ३ ॥