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वि॒शोवि॑श॒ ईड्य॑मध्व॒रेष्वदृ॑प्तक्रतुमर॒तिं यु॑व॒त्योः। दि॒वः शिशुं॒ सह॑सः सू॒नुम॒ग्निं य॒ज्ञस्य॑ के॒तुम॑रु॒षं यज॑ध्यै ॥२॥

English Transliteration

viśo-viśa īḍyam adhvareṣv adṛptakratum aratiṁ yuvatyoḥ | divaḥ śiśuṁ sahasaḥ sūnum agniṁ yajñasya ketum aruṣaṁ yajadhyai ||

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Pad Path

वि॒शःऽवि॑शः। ई॒ड्य॑म्। अ॒ध्व॒रेषु॑। अदृ॑प्तऽक्रतुम्। अ॒र॒तिम्। यु॒व॒त्योः। दि॒वः। शिशु॑म्। सह॑सः। सू॒नुम्। अ॒ग्निम्। य॒ज्ञस्य॑। के॒तुम्। अ॒रु॒षम्। यज॑ध्यै ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसकी स्तुति करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (अध्वरेषु) अहिंसनीय व्यवहारों में (विशोविशः) प्रजा-प्रजा के बीच (अरतिम्) विषयों में विना रमते हुए (अदृप्तक्रतुम्) जिसकी बुद्धि मोहित नहीं हुई उस (ईड्यम्) स्तुति करने योग्य (युवत्योः) युवावस्था को प्राप्त हुए स्त्री-पुरुष के (दिवः) मनोहर व्यवहारसम्बन्धी (शिशुम्) बालक की (सहसः) वा बलवान् के (सूनुम्) उस पुत्र की जो (अग्निम्) अग्नि के समान वर्त्तमान तथा (अरुषम्) कुछ लाल रंग युक्त और (यज्ञस्य) यज्ञादि कर्म का (केतुम्) अच्छे प्रकार समझानेवाला है (यजध्यै) सङ्ग करने के लिये स्तुति करो ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो ब्रह्मचर्य्य से युवा अवस्था को प्राप्त स्त्री-पुरुषों के उत्तम बल से उत्पन्न, अग्नि के समान तेजस्वी हो, उसको राजा वा अधिकारी करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कं स्तूयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! अध्वरेषु विशोविशो मध्येऽरतिमदृप्तक्रतुमीड्यं युवत्योर्दिवः शिशुं सहसस्सूनुमग्निमिव वर्त्तमानमरुषं यज्ञस्य केतुं यजध्यै स्तुवन्तु ॥२॥

Word-Meaning: - (विशोविशः) प्रजायाः प्रजाया मध्ये (ईड्यम्) स्तोतुमर्हम् (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु व्यवहारेषु (अदृप्तक्रतुम्) अमोहितप्रज्ञम् (अरतिम्) विषयेष्वरममाणम् (युवत्योः) युवावस्थां प्राप्तयोः स्त्रीपुरुषयोः (दिवः) कमनीयस्य (शिशुम्) बालकम् (सहसः) बलवतः (सूनुम्) (अग्निम्) पावकमिव वर्त्तमानम् (यज्ञस्य) (केतुम्) प्रज्ञापकम् (अरुषम्) आरक्तगुणम् (यजध्यै) यष्टुं सङ्गन्तुम् ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो ब्रह्मचर्य्येण युवावस्थां प्राप्तयोः स्त्रीपुरुषयोरुत्तमाद् बलाज्जातोऽग्निरिव तेजस्वी भवेत्तमेव राजानमधिकारिणं वा कुरुत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -हे माणसांनो ! जो ब्रह्मचर्य पालन करून युवावस्था प्राप्त केलेल्या बलवान स्त्री-पुरुषाकडून उत्पन्न झालेल्या अग्नीप्रमाणे तेजस्वी असेल त्याला राजा किंवा अधिकारी बनवा. ॥ २ ॥