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प्र वी॒राय॒ प्र त॒वसे॑ तु॒रायाजा॑ यू॒थेव॑ पशु॒रक्षि॒रस्त॑म्। स पि॑स्पृशति त॒न्वि॑ श्रु॒तस्य॒ स्तृभि॒र्न नाकं॑ वच॒नस्य॒ विपः॑ ॥१२॥

English Transliteration

pra vīrāya pra tavase turāyājā yūtheva paśurakṣir astam | sa pispṛśati tanvi śrutasya stṛbhir na nākaṁ vacanasya vipaḥ ||

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Pad Path

प्र। वी॒राय॑। प्र। त॒वसे॑। तु॒राय॑। अज॑। यू॒थाऽइ॑व। प॒शु॒ऽरक्षिः॑। अस्त॑म्। सः। पि॒स्पृ॒श॒ति॒। त॒न्वि॑। श्रु॒तस्य॑। स्तृऽभिः॑। न। नाक॑म्। व॒च॒नस्य॑। विपः॑ ॥१२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके तुल्य किसको प्राप्त हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (विपः) मेधावीजन (स्तृभिः) नक्षत्रों से (नाकम्) जिसमें दुःख नहीं विद्यमान उस अन्तरिक्ष को (न) जैसे (तन्वि) शरीर में (श्रुतस्य) सुने हुए (वचनस्य) वचन का वा (अजा) छाग (यूथेव) समूहों को जैसे वैसे वा (पशुरक्षिः) पशुओं की रक्षा करनेवाला (अस्तम्) घर को जैसे वैसे (वीराय) शूरता आदि गुणों से युक्त (तवसे) बढ़ानेवाले (तुराय) दुःखनाशक के लिये घर का (प्र, पिस्पृशति) अत्यन्त स्पर्श करता (सः) वह सुखों का (प्र) अच्छे प्रकार अत्यन्त स्पर्श करता है ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य, जैसे भेड़ बकरी दौड़ के अपने झुण्ड को वा जैसे सायङ्काल में गोपाल घरको, वैसे समस्त विद्या के श्रवण को प्राप्त होता है ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किंवत् किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो विपः स्तृभिर्नाकं न तन्वि श्रुतस्य वचनस्याऽजा यूथेव पशुरक्षिरस्तमिव वीराय तवसे तुरायास्तं प्र पिस्पृशति स सुखानि प्र पिस्पृशति ॥१२॥

Word-Meaning: - (प्र) (वीराय) शौर्यादिगुणोपेताय (प्र) (तवसे) वर्धकाय (तुराय) दुःखहिंसकाय (अजा) छागः (यूथेव) समूह इव (पशुरक्षिः) पशूनां रक्षकः (अस्तम्) गृहम् (सः) (पिस्पृशति) अत्यन्तं स्पृशति (तन्वि) शरीरे (श्रुतस्य) (स्तृभिः) नक्षत्रैः (न) इव (नाकम्) अविद्यमानदुःखमन्तरिक्षम् (वचनस्य) (विपः) मेधावी ॥१२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यो यथाऽजाऽवयो धावित्वा स्वसमुदायं यथा वा सायं समये गोपालो गृहं तथा सकलविद्याश्रवणं प्राप्नोति ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा मेंढ्या, बकऱ्या धावत येऊन आपल्या कळपात राहतात व गोपाळ सायंकाळी घरी येतो तसे माणूस संपूर्ण विद्या श्रवणाने प्राप्त करतो. ॥ १२ ॥