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स्तु॒षे जनं॑ सुव्र॒तं नव्य॑सीभिर्गी॒र्भिर्मि॒त्रावरु॑णा सुम्न॒यन्ता॑। त आ ग॑मन्तु॒ त इ॒ह श्रु॑वन्तु सुक्ष॒त्रासो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निः ॥१॥

English Transliteration

stuṣe janaṁ suvrataṁ navyasībhir gīrbhir mitrāvaruṇā sumnayantā | ta ā gamantu ta iha śruvantu sukṣatrāso varuṇo mitro agniḥ ||

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Pad Path

स्तु॒षे। जन॑म्। सु॒ऽव्र॒तम्। नव्य॑सीभिः। गीः॒ऽभिः। मि॒त्रावरु॑णा। सु॒म्न॒ऽयन्ता॑। ते। आ। ग॒म॒न्तु॒। ते। इ॒ह। श्रु॒व॒न्तु॒। सु॒ऽक्ष॒त्रासः॑। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒ग्निः ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पन्द्रह ऋचावाले उनचासवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (नव्यसीभिः) अतीव नवीन (गीर्भिः) शीघ्र सुशिक्षित वाणियों से (सुव्रतम्) जिसके शुभ व्रत अर्थात् कर्म हैं उस (जनम्) मनुष्य की और (सुम्नयन्ता) सुख प्राप्ति करानेवाले (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान पढ़ाने और उपदेश करनेवाले की मैं (स्तुषे) स्तुति करता हूँ तथा जो (मित्रः) मित्र (वरुणः) श्रेष्ठ (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी और (सुक्षत्रासः) जिनका सुन्दर राज्य वा धन है ऐसे वर्त्तमान हैं (ते) वे (इह) यहाँ (आ, गमन्तु) आवें और (ते) वे (श्रुवन्तु) श्रवण करें ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो तुमको नवीन-नवीन विद्या का उपदेश करते हैं, उनको बुलाकर वा उनसे मेलकर उनसे सुनकर विद्याओं को प्राप्त होओ ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! नव्यसीभिर्गीर्भिः सुव्रतं जनं सुम्नयन्ता मित्रावरुणा चाऽहं स्तुषे। ये मित्रो वरुणोऽग्निः सुक्षत्रासो वर्त्तन्ते ते इहाऽऽगमन्तु ते श्रुवन्तु ॥१॥

Word-Meaning: - (स्तुषे) स्तौमि (जनम्) मनुष्यम् (सुव्रतम्) शोभनानि व्रतानि कर्माणि यस्य तम् (नव्यसीभिः) अतिशयेन नवीनाभिः (गीर्भिः) सद्यः सुशिक्षिताभिः वाग्भिः (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविवाध्यापकोपदेशकौ (सुम्नयन्ता) सुखं प्रापयन्तौ (ते) (आ) (गमन्तु) आगच्छन्तु (ते) (इह) (श्रुवन्तु) शृण्वन्तु (सुक्षत्रासः) शोभनं क्षत्रं राष्ट्रं धनं वा येषान्ते (वरुणः) श्रेष्ठः (मित्रः) सखा (अग्निः) अग्निरिव तेजस्वी ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये युष्मान्नवीनां नवीनां विद्यामुपदिशन्ति तानाहूय सङ्गत्य तेभ्यः श्रुत्वा विद्याः प्राप्नुत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सर्व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - भावार्थ -हे माणसांनो ! जे तुम्हाला नवनवीन विद्येचा उपदेश करतात त्यांच्या संगतीत राहून श्रवण करा व विद्या प्राप्त करा. ॥ १ ॥