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विश्वा॑सां गृ॒हप॑तिर्वि॒शाम॑सि॒ त्वम॑ग्ने॒ मानु॑षीणाम्। श॒तं पू॒र्भिर्य॑विष्ठ पा॒ह्यंह॑सः समे॒द्धारं॑ श॒तं हिमाः॑ स्तो॒तृभ्यो॒ ये च॒ दद॑ति ॥८॥

English Transliteration

viśvāsāṁ gṛhapatir viśām asi tvam agne mānuṣīṇām | śatam pūrbhir yaviṣṭha pāhy aṁhasaḥ sameddhāraṁ śataṁ himāḥ stotṛbhyo ye ca dadati ||

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Pad Path

विश्वा॑साम्। गृ॒हऽप॑तिः। वि॒शाम्। अ॒सि॒। त्वम्। अ॒ग्ने॒। मानु॑षीणाम्। श॒तम्। पूः॒ऽभिः। य॒वि॒ष्ठ॒। पा॒हि॒। अंह॑सः। स॒म्ऽए॒द्धार॑म्। श॒तम्। हिमाः॑। स्तो॒तृऽभ्यः॑। ये। च॒। दद॑ति ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:48» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) शरीर और आत्मा के बल से युक्त (अग्ने) दुष्टों के दाह करनेवाले ! (ये) जो (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवाले विद्वानों से (शतम्) सौ (हिमाः) वृद्धि वा हेमन्त आदि ऋतुओं तक (समेद्धारम्) अच्छे प्रकार प्रकाश करनेवाले को (ददति) देते (च) और शुभ गुणों को ग्रहण कर दूसरों को देते हैं, उनके साथ युक्त (विश्वासाम्) समस्त (मानुषीणाम्) मनुष्य सम्बन्धी (विशाम्) प्रजाजनों के बीच जिससे (त्वम्) आप (गृहपतिः) धन के स्वामी (असि) हैं वा (पूर्भिः) नगरों के साथ इनके लिये (शतम्) सौ पदार्थ देते हैं, इस कारण हम लोगों की (अंहसः) दुष्ट आचरण से (पाहि) रक्षा करो ॥८॥
Connotation: - हे राजन् ! जो इस प्रजा में विद्या और धर्म आदि शुभ गुणों को ग्रहण कराते हैं, उनका तुम निरन्तर सत्कार करो और वे आपका भी सत्कार करें ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे यविष्ठाग्ने ! ये स्तोतृभ्यः शतं हिमाः समेद्धारं ददति शुभान् गुणांश्च गृहीत्वा प्रयच्छन्ति तैस्सह युक्तानां विश्वासां मानुषीणां विशां यतस्त्वं गृहपतिरसि पूर्भिस्सहैतेभ्यः शतं ददाति तस्मादस्मानंहसः पाहि ॥८॥

Word-Meaning: - (विश्वासाम्) सर्वासाम् (गृहपतिः) गृहस्य स्वामी (विशाम्) प्रजानाम् (असि) (त्वम्) (अग्ने) दुष्टानां दाहक (मानुषीणाम्) (शतम्) (पूर्भिः) नगरैः (यविष्ठ) शरीरात्मबलाभ्यां युक्त (पाहि) (अंहसः) दुष्टाचारात् (समेद्धारम्) सम्यक् प्रकाशकम् (शतम्) (हिमाः) वृद्धीर्हेमन्तानृतून् वा (स्तोतृभ्यः) विद्वद्भ्यः (ये) (च) सद्गुणान् (ददति) ॥८॥
Connotation: - हे राजन् ! येऽत्र प्रजायां विद्याधर्मादिशुभगुणान् ग्राहयन्ति तांस्त्वं सततं सस्कुर्यास्ते भवन्तं च सत्कुर्युः ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जे प्रजेला विद्या व धर्म इत्यादी शुभ गुण ग्रहण करवितात त्यांचा तू निरंतर सत्कार कर व त्यांनीही तुझा सत्कार करावा. ॥ ८ ॥