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वृषा॒ ह्य॑ग्ने अ॒जरो॑ म॒हान्वि॒भास्य॒र्चिषा॑। अज॑स्रेण शो॒चिषा॒ शोशु॑चच्छुचे सुदी॒तिभिः॒ सु दी॑दिहि ॥३॥

English Transliteration

vṛṣā hy agne ajaro mahān vibhāsy arciṣā | ajasreṇa śociṣā śośucac chuce sudītibhiḥ su dīdihi ||

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Pad Path

वृषा॑। हि। अ॒ग्ने॒। अ॒जरः॑। म॒हान्। वि॒ऽभासि॑। अ॒र्चिषा॑। अज॑स्रेण। शो॒चिषा॑। शोशु॑चत्। शु॒चे॒। सु॒दी॒तिऽभिः॑। सु। दी॒दि॒हि॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:48» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शुचे) विद्या और विनय से प्रकाशित (अग्ने) पावक के समान वर्त्तमान ! (हि) जिससे (वृषा) अत्यन्त बलवान् (अजरः) जरा अवस्था से रहित (महान्) बड़े आप (अजस्रेण) निरन्तर (अर्चिषा) सत्कार वा दीप्ति से (शोचिषा) वा प्रकाश से (शोशुचत्) निरन्तर पवित्र करते हुए (सुदीतिभिः) उत्तम दीप्तियों से सबको (विभासि) विशेषता से प्रकाशित करते हैं, इससे हम लोगों को (सु, दीदिहि) प्रकाशित कीजिये ॥३॥
Connotation: - हे राजन् ! आपको चाहिये कि निरन्तर विद्या और विनय के प्रकाश से और दुष्ट व्यसनों के नाश से प्रजा की निरन्तर पालना करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे शुचेऽग्ने ! हि यतो वृषाऽजरो महांस्त्वमजस्रेणार्चिषा शोचिषा सुदीतिभिः सर्वान् विभासि तस्मादस्मान् सु दीदिहि ॥३॥

Word-Meaning: - (वृषा) बलिष्ठः (हि) यतः (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (अजरः) जरारहितः (महान्) (विभासि) (अर्चिषा) सत्कारेण दीप्त्या वा (अजस्रेण) निरन्तरेण (शोचिषा) प्रकाशेन (शोशुचत्) भृशं पवित्रयन् (शुचे) विद्याविनयाभ्यां प्रकाशित (सुदीतिभिः) सुष्ठु दीप्तिभिः (सु) (दीदिहि) प्रकाशय ॥३॥
Connotation: - हे राजंस्त्वया सततं विद्याविनयप्रकाशेन दुर्व्यसनक्षयेण प्रजाः सततं पालनीयाः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू सतत विद्या व विनयाने दुर्व्यसनाचा नाश करून प्रजेचे निरंतर पालन कर. ॥ ३ ॥