म का॑क॒म्बीर॒मुद्वृ॑हो॒ वन॒स्पति॒मश॑स्ती॒र्वि हि नीन॑शः। मोत सूरो॒ अह॑ ए॒वा च॒न ग्री॒वा आ॒दध॑ते॒ वेः ॥१७॥
mā kākambīram ud vṛho vanaspatim aśastīr vi hi nīnaśaḥ | mota sūro aha evā cana grīvā ādadhate veḥ ||
मा। का॒क॒म्बीर॑म्। उत्। वृ॒हः॒। वन॒स्पति॑म्। अश॑स्तीः। वि। हि। नीन॑शः। मा। उ॒त। सूरः॑। अह॒रिति॑। ए॒व। च॒न। ग्री॒वा। आ॒ऽदध॑ते। वेः ॥१७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यैः किं न कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे विद्वंस्त्वं काकंबीरं वनस्पतिं मोद्वृहोऽशस्तीर्हि वि नीनशः सूरोऽहरेवा यथा वेर्ग्रीवाश्चनाऽऽदधते तथोतास्मान् मा पीडय ॥१७॥
MATA SAVITA JOSHI
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