Go To Mantra

पर्षि॑ तो॒कं तन॑यं प॒र्तृभि॒ष्ट्वमद॑ब्धै॒रप्र॑युत्वभिः। अग्ने॒ हेळां॑सि॒ दैव्या॑ युयोधि॒ नोऽदे॑वानि॒ ह्वरां॑सि च ॥१०॥

English Transliteration

parṣi tokaṁ tanayam partṛbhiṣ ṭvam adabdhair aprayutvabhiḥ | agne heḻāṁsi daivyā yuyodhi no devāni hvarāṁsi ca ||

Mantra Audio
Pad Path

पर्षि॑। तो॒कम्। तन॑यम्। प॒र्तृऽभिः॑। त्वम्। अद॑ब्धैः। अप्र॑युत्वऽभिः। अग्ने॑। हेलां॑सि। दैव्या॑। यु॒यो॒धि॒। नः॒। अदे॑वानि। ह्वरां॑सि। च॒ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:48» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कौन सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) पढ़ानेवाला ! जिस कारण (त्वम्) आप (अप्रयुत्वभिः) न मिले हुए अर्थात् अलग-अलग विद्यमान (अदब्धैः) हिंसारहित (पर्तृभिः) पालना करनेवाले व्यवहारों से (नः) हमारे (तोकम्) शीघ्र उत्पन्न हुए सन्तान वा (तनयम्) सुन्दर कुमार की (पर्षि) पालना करते हो और (अदेवानि) अशुद्ध (दैव्या) विद्वानों में कहे गये (हेळांसि) अनादरों और (ह्वरांसि) कुटिल कर्मों को (च) भी (युयोधि) अलग करते हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥१०॥
Connotation: - जो अध्यापक वा उपदेशक पढ़ाने तथा उपदेश करने से शुभ गुणों को ग्रहण करा कर सब के दोषों का निवारण कराते हैं, वे ही सदा सत्कार करने योग्य होते हैं ॥१०॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः के सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यतस्त्वमप्रयुत्वभिरदब्धैः पर्तृभिर्नस्तोकं तनयं पर्षि। अदेवानि दैव्या हेळांसि ह्वरांसि च युयोधि तस्मात् सत्कर्तव्योऽसि ॥१०॥

Word-Meaning: - (पर्षि) पालयसि (तोकम्) सद्योजातमपत्यम् (तनयम्) सुकुमारम् (पर्तृभिः) पालकैः (त्वम्) (अदब्धैः) अहिंसनैः (अप्रयुत्वभिः) अविभक्तैः (अग्ने) अध्यापक (हेळांसि) अनादररूपाणि (दैव्या) देवेषु प्रयुक्तानि (युयोधि) वियोजय (नः) अस्माकम् (अदेवानि) अशुद्धानि (ह्वरांसि) कुटिलानि कर्माणि (च) ॥१०॥
Connotation: - येऽध्यापकोपदेशका अध्यापनोपदेशाभ्यां शुभान् गुणान् ग्राहयित्वा सर्वेषां दोषान्निवारयन्ति त एव सर्वदा सत्कर्त्तव्या भवन्ति ॥१०॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे अध्यापक व उपदेशक अध्यापन व उपदेश करून शुभ गुण ग्रहण करून सर्वांच्या दोषांचे निराकरण करतात तेच सदैव सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १० ॥