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तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म। स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मे आ॒राच्चि॒द्द्वेषः॑ सनु॒तर्यु॑योतु ॥१३॥

English Transliteration

tasya vayaṁ sumatau yajñiyasyāpi bhadre saumanase syāma | sa sutrāmā svavām̐ indro asme ārāc cid dveṣaḥ sanutar yuyotu ||

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Pad Path

तस्य॑। व॒यम्। सु॒ऽम॒तौ। य॒ज्ञिय॑स्य। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒। सः। सु॒ऽत्रामा॑। स्वऽवा॑न्। इन्द्रः॑। अ॒स्मे इति॑। आ॒रात्। चि॒त्। द्वेषः॑। स॒नु॒तः। यु॒यो॒तु॒ ॥१३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:47» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:32» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और प्रजाजन कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (वयम्) हमलोग (तस्य) उस पहिले प्रतिपादन किये विद्या और विनय से युक्त राजा के और (यज्ञियस्य) विद्वानों की सेवा, सङ्ग और विद्याके दान करने के योग्य की (सुमतौ) सुन्दर बुद्धि में (सौमनसे) उत्तम धर्म से युक्त मानस व्यवहार में (भद्रे) कल्याण करनेवाले में (अपि) भी निश्चय से वर्त्तमान (स्याम) होवें और जो (स्ववान्) अपने सामर्थ्य से युक्त (इन्द्रः) विद्या देनेवाला (अस्मे) हम लोगों की (सुत्रामा) उत्तम प्रकार पालना करनेवाला होता हुआ हम लोगों के (आरात्) समीप वा दूर से (चित्) भी (द्वेषः) धर्म से द्वेष करनेवालों को (सनुतः) सदा ही (युयोतु) पृथक् करे (सः) वह हम लोगों से सदा सत्कार करने योग्य है ॥१३॥
Connotation: - हे राजा और प्रजाजनो ! जिस शुद्ध, न्याय और श्रेष्ठ गुणों में राजा वर्त्ताव करे, वैसे इस विषय में हम लोग भी वर्त्ताव करें और सब मिलकर मनुष्यों से दोषों को दूर करके गुणों को संयुक्त करके सब काल में न्याय और धर्म्म के पालन करनेवाले होवें ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजप्रजाजनाः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! वयं तस्य यज्ञियस्य सुमतौ सौमनसे भद्रेऽपि निश्चयेन वर्त्तमानाः स्याम। यः स्ववानिन्द्रोऽस्मे सुत्रामा सन्नस्माकमाराद्दूराच्चिद्द्वेषः सनुतर्युयोतु सोऽस्माभिः सदैव सत्कर्त्तव्यः ॥१३॥

Word-Meaning: - (तस्य) प्रतिपादितपूर्वस्य विद्याविनययुक्तस्य राज्ञः (वयम्) (सुमतौ) शोभनायां प्रज्ञायाम् (यज्ञियस्य) विद्वत्सेवासङ्गविद्यादानानि कर्तुमर्हस्य (अपि) (भद्रे) कल्याणकरे (सौमनसे) सुष्ठु धर्मयुक्ते मानसे व्यवहारे (स्याम) (सः) (सुत्रामा) सर्वेषां सम्यक्पालकः (स्ववान्) स्वकीयसामर्थ्ययुक्तः (इन्द्रः) विद्याप्रदः (अस्मे) अस्माकम् (आरात्) समीपाद् दूराद्वा (चित्) अपि (द्वेषः) धर्मद्वेष्टॄन् (सनुतः) सदैव (युयोतु) पृथक्करोतु ॥१३॥
Connotation: - हे राजप्रजाजन यस्मिञ्छुद्धे न्याये शुभेषु गुणेषु च राजा वर्त्तेत तथैवात्र वयमपि वर्त्तेमहि, सर्वे मिलित्वा मनुष्येभ्यो दोषान् दूरीकृत्य गुणान् संयोज्य सर्वदा न्यायधर्मपालका भवेम ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा व प्रजाजनांनो ! ज्या खऱ्या न्याय व श्रेष्ठ गुणांनी युक्त राजा वागतो त्याप्रमाणे आम्हीही वागावे व सर्वांनी मिळून माणसांचे दोष दूर करून गुणांना संयुक्त करून सर्वकाळी न्याय व धर्माचे पालन करणारे बनावे. ॥ १३ ॥