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इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृळी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः। बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥१२॥

English Transliteration

indraḥ sutrāmā svavām̐ avobhiḥ sumṛḻīko bhavatu viśvavedāḥ | bādhatāṁ dveṣo abhayaṁ kṛṇotu suvīryasya patayaḥ syāma ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। सु॒ऽत्रामा॑। स्वऽवा॑न्। अवः॑ऽभिः। सु॒ऽमृ॒ळी॒कः। भ॒व॒तु॒। वि॒श्वऽवे॑दाः। बाध॑ताम्। द्वेषः॑। अभ॑यम्। कृ॒णो॒तु॒। सु॒ऽवीर्य॑स्य। पत॑यः। स्या॒म॒ ॥१२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:47» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:32» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो और उसकी रक्षा कौन करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (सुत्रामा) उत्तम प्रकार रक्षा करनेवाला (स्ववान्) बहुत अपने जन विद्यमान जिसके ऐसा (विश्ववेदाः) सम्पूर्ण विज्ञान को जाननेवाला (इन्द्रः) दुष्टता का नाश करनेवाला (अवोभिः) रक्षण आदि से हम लोगों का (सुमृळीकः) उत्तम प्रकार सुख करनेवाला (भवतु) हो तथा (द्वेषः) आदि दोषों से युक्त जनों का (बाधताम्) निवारण करे और (अभयम्) निर्भयपन (कृणोतु) करे, उस (सुवीर्यस्य) सुन्दर पराक्रम वा ब्रह्मचर्य्यवाले के हम लोग (पतयः) पालन करनेवाले स्वामी (स्याम) होवें, उसके रक्षक आप लोग भी हूजिये ॥१२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो राजा सम्पूर्ण विद्या और किये हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य्य से युक्त बहुत मित्रोंवाला और अपने सदृश श्रेष्ठ का रक्षक, दुष्टों को दण्ड देनेवाला, सब प्रकार से निर्भयता करता है, उसकी रक्षा सब को चाहिये कि सब प्रकार से करें ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृशो भवेत्तस्य रक्षा कैः कार्येत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः सुत्रामा स्ववान् विश्ववेदा इन्द्रोऽवोभिरस्माकं सुमृळीको भवतु द्वेषो बाधतामभयं कृणोतु तस्य सुवीर्यस्य वयं पतयः स्याम तस्य रक्षका यूयमपि भवत ॥१२॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) दुष्टताविदारको राजा (सुत्रामा) सुष्ठुरक्षकः (स्ववान्) बहवः स्वे विद्यन्ते यस्य सः (अवोभिः) रक्षणादिभिः (सुमृळीकः) सुष्ठु सुखकरः (भवतु) (विश्ववेदाः) यो विश्वं विज्ञानं वेत्ति (बाधताम्) निवारयतु (द्वेषः) द्वेषादिदोषयुक्तान् (अभयम्) भयराहित्यम् (कृणोतु) करोतु (सुवीर्यस्य) शोभनं वीर्यं पराक्रमो ब्रह्मचर्यं यस्य तस्य (पतयः) पालकाः स्वामिनः (स्याम) ॥१२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो राजाऽखिलविद्यः कृतपूर्णब्रह्मचर्यो बहुमित्रः स्वात्मवच्छ्रेष्ठस्य रक्षको दुष्टस्य दण्डकृत्सर्वतो निर्भयतां करोति तस्य रक्षा सर्वैः सर्वथा कर्त्तव्या ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो राजा संपूर्ण विद्या, ब्रह्मचर्ययुक्त अनेक मित्र असलेला व स्वतःप्रमाणे श्रेष्ठांचा रक्षक, दुष्टांना दंड देणारा, सर्व प्रकारे निर्भय असतो त्याचे सर्वांनी सर्व प्रकारे रक्षण करावे. ॥ १२ ॥