स्वा॒दुष्किला॒यं मधु॑माँ उ॒तायं ती॒व्रः किला॒यं रस॑वाँ उ॒तायम्। उ॒तो न्व१॒॑स्य प॑पि॒वांस॒मिन्द्रं॒ न कश्च॒न स॑हत आह॒वेषु॑ ॥१॥
svāduṣ kilāyam madhumām̐ utāyaṁ tīvraḥ kilāyaṁ rasavām̐ utāyam | uto nv asya papivāṁsam indraṁ na kaś cana sahata āhaveṣu ||
स्वा॒दुः। किल॑। अ॒यम्। मधु॑ऽमान्। उ॒त। अ॒यम्। ती॒व्रः। किल। अ॒यम्। रस॑ऽवान्। उ॒त। अ॒यम्। उ॒तो इति॑। नु। अ॒स्य। प॒पि॒ऽवांस॑म्। इन्द्र॑म्। न। कः। च॒न। स॒ह॒ते॒। आ॒ऽह॒वेषु॑ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब एकतीस ऋचावाले सैंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में क्या करके राजा शत्रुओं से नहीं सहने योग्य होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ किं कृत्वा राजा शत्रुभिरसोढव्यः स्यादित्याह ॥
हे शूरवीरा ! योऽयं स्वादुः किल उतायं मधुमान् किलाऽयं तीव्र उतायं रसवानोषधिसारोऽस्ति। अस्योतो पपिवांसमिन्द्रमाहवेषु नु कश्चन न सहते ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात सोम, प्रश्नोत्तर, विद्युत, राजा, प्रजा, सेना व वाद्यांनी भूषित कृत्यांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.