यस्य॑ वा॒योरि॑व द्र॒वद्भ॒द्रा रा॒तिः स॑ह॒स्रिणी॑। स॒द्यो दा॒नाय॒ मंह॑ते ॥३२॥
yasya vāyor iva dravad bhadrā rātiḥ sahasriṇī | sadyo dānāya maṁhate ||
यस्य॑। वा॒योःऽइ॑व। द्र॒वत्। भ॒द्रा। रा॒तिः। स॒ह॒स्रिणी॑। स॒द्यः। दा॒नाय॑। मंह॑ते ॥३२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
श्रेष्ठ विद्या आदि के दान से क्या होता है, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
सद्विद्यादिदानेन किं भवतीत्याह ॥
हे मनुष्या ! यस्य सहस्रिणी भद्रा रातिर्वायोरिव द्रवत् स सद्यो दानाय मंहत इति वेद्यम् ॥३२॥
MATA SAVITA JOSHI
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