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अधि॑ बृ॒बुः प॑णी॒नां वर्षि॑ष्ठे मू॒र्धन्न॑स्थात्। उ॒रुः कक्षो॒ न गा॒ङ्ग्यः ॥३१॥

English Transliteration

adhi bṛbuḥ paṇīnāṁ varṣiṣṭhe mūrdhann asthāt | uruḥ kakṣo na gāṅgyaḥ ||

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Pad Path

अधि॑। बृ॒बुः। प॒णी॒नाम्। वर्षि॑ष्ठे। मू॒र्धन्। अ॒स्था॒त्। उ॒रुः। कक्षः॑। न। गा॒ङ्ग्यः ॥३१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:45» Mantra:31 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:31


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब व्यापार विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (उरुः) बहुत (कक्षः) जल का उल्लङ्घन करनेवाला टापू वा तट आदि (गाङ्ग्यः) पृथिवी को प्राप्त होनेवाली के समीप में वर्त्तमान (न) जैसे वैसे (पणीनाम्) प्रशंसा करने योग्य व्यवहार करनेवालों के (वर्षिष्ठे) अतिशय वृद्ध (मूर्द्धन्) मस्तक में (बृबुः) काटनेवाला (अधि) ऊपर (अस्थात्) स्थित होता है, वह आप लोगों से कार्य्य में उत्तम प्रकार संयुक्त करने योग्य है ॥३१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे पृथिवियों में जाती हुई नदी के मध्यस्थ टापू और तट समीप में वर्त्तमान हैं, वैसे ही व्यापारियों के समीप में शिल्पीजन वर्त्तमान होवें ॥३१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ व्यापारविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः उरुः कक्षो गाङ्ग्यो न पणीनां वर्षिष्ठे मूर्द्धन् बृबुरध्यस्थात् स युष्माभिः कार्य्ये संप्रयोजनीयः ॥३१॥

Word-Meaning: - (अधि) उपरि (बृबुः) छेत्ता (पणीनाम्) प्रशंसितानां व्यवहर्तॄणाम् (वर्षिष्ठे) अतिशयेन वृद्धे (मूर्द्धन्) मूर्धनि (अस्थात्) तिष्ठति (उरुः) बहुः (कक्षः) क्रान्तस्तटादिः (न) इव (गाङ्ग्यः) यो गां गच्छति तस्या अदूरभवः ॥३१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा भूमिषु गच्छन्त्याः सरितो मध्यस्थाः कक्षास्तटाश्च निकटे वर्त्तन्ते तथैव व्यापारिणां समीपे शिल्पिनो वर्त्तन्ताम् ॥३१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे पृथ्वीवरील नदीचा मध्यभाग व किनारा हे जवळच असतात तसे व्यापाऱ्याजवळ कारागीर असावेत. ॥ ३१ ॥