दू॒णाशं॑ स॒ख्यं तव॒ गौर॑सि वीर गव्य॒ते। अश्वो॑ अश्वाय॒ते भ॑व ॥२६॥
dūṇāśaṁ sakhyaṁ tava gaur asi vīra gavyate | aśvo aśvāyate bhava ||
दुः॒ऽनश॑म्। स॒ख्यम्। तव॑। गौः। अ॒सि॒। वी॒र॒। ग॒व्य॒ते। अश्वः॑। अ॒श्व॒ऽय॒ते। भ॒व॒ ॥२६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
किन की मित्रता नहीं जीर्ण होती है, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
केषां सख्यं न जीर्यत इत्याह ॥
हे वीर राजन् विद्वन् वा ! यस्त्वं गव्यते गौरिवाश्वायतेऽश्व इवासि यस्य तव प्रेमास्पदबद्धं दूणाशं सख्यमस्ति स त्वमस्माकं सुहृद्भव ॥२६॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A