न घा॒ वसु॒र्नि य॑मते दा॒नं वाज॑स्य॒ गोम॑तः। यत्सी॒मुप॒ श्रव॒द्गिरः॑ ॥२३॥
na ghā vasur ni yamate dānaṁ vājasya gomataḥ | yat sīm upa śravad giraḥ ||
न। घ॒। वसुः॑। नि। य॒म॒ते॒। दा॒नम्। वाज॑स्य। गोऽम॑तः। यत्। सी॒म्। उप॑। श्र॒व॒त्। गिरः॑ ॥२३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर राजा प्रजाजन परस्पर कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
यद्यो जनो गोमतो वाजस्य वसुर्दानं नि यमते गिरः सीमुप श्रवत्स न घा हन्यते ॥२३॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A