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येन॑ वृ॒द्धो न शव॑सा तु॒रो न स्वाभि॑रू॒तिभिः॑। सोमः॑ सु॒तः स इ॑न्द्र॒ तेऽस्ति॑ स्वधापते॒ मदः॑ ॥३॥

English Transliteration

yena vṛddho na śavasā turo na svābhir ūtibhiḥ | somaḥ sutaḥ sa indra te sti svadhāpate madaḥ ||

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Pad Path

येन॑। वृ॒द्धः। न। शव॑सा। तु॒रः। न। स्वाभिः॑। ऊ॒तिऽभिः॑। सोमः॑। सु॒तः। सः। इ॒न्द्र॒। ते॒। अस्ति॑। स्व॒धा॒ऽप॒ते॒ मदः॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (स्वधापते) अपने पदार्थों के धारण करनेवाले (इन्द्र) राजन् ! आप (येन) जिस ऐश्वर्य से और (शवसा) बल से (वृद्धः) (न) जैसे वैसे वा (तुरः) हिंसक (न) जैसे वैसे (स्वाभिः) अपनी (ऊतिभिः) रक्षाओं से (मदः) आनन्द देनेवाला (सः) वह (सोमः) ओषधियों का रस (सुतः) उत्पन्न किया गया (ते) आपका (अस्ति) है, उसकी आप वृद्धि कीजिये ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस पुरुषार्थ से विद्वान् होकर युवा भी वृद्ध होते हैं, उसको निरन्तर सञ्चित कीजिये अर्थात् स­ह कीजिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे स्वधापत इन्द्र ! त्वं येन शवसा वृद्धो न तुरो न स्वाभिरूतिभिर्मदः स सोमः सुतस्तेऽस्ति तं त्वं वर्धय ॥३॥

Word-Meaning: - (येन) ऐश्वर्येण (वृद्धः) स्थविरः (न) इव (शवसा) बलेन (तुरः) हिंसकः (न) इव (स्वाभिः) स्वकीयाभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (सोमः) ओषधिरसः (सुतः) निष्पादितः (सः) (इन्द्र) राजन् (ते) तव (अस्ति) (स्वधापते) स्वकीयपदार्थानां धर्त्तः (मदः) आनन्ददः ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येन पुरुषार्थेन विद्वांसो भूत्वा युवानोऽपि वृद्धा जायन्ते तं सततं संचिनुत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्या पुुरुषार्थाने युवक विद्वान बनून वृद्ध (अनुभवी) होतात तो पुरुषार्थ सतत संचित करा. ॥ ३ ॥