Go To Mantra

अ॒यम॑कृणोदु॒षसः॑ सु॒पत्नी॑र॒यं सूर्ये॑ अदधा॒ज्ज्योति॑र॒न्तः। अ॒यं त्रि॒धातु॑ दि॒वि रो॑च॒नेषु॑ त्रि॒तेषु॑ विन्दद॒मृतं॒ निगू॑ळ्हम् ॥२३॥

English Transliteration

ayam akṛṇod uṣasaḥ supatnīr ayaṁ sūrye adadhāj jyotir antaḥ | ayaṁ tridhātu divi rocaneṣu triteṣu vindad amṛtaṁ nigūḻham ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒यम्। अ॒कृ॒णो॒त्। उ॒षसः॑। सु॒ऽपत्नीः॑। अ॒यम्। सूर्ये॑। अ॒द॒धा॒त्। ज्योतिः॑। अ॒न्तरिति॑। अ॒यम्। त्रि॒ऽधातु॑। दि॒वि। रो॒च॒नेषु॑। त्रि॒तेषु॑। वि॒न्द॒त्। अ॒मृत॑म्। निऽगू॑ळ्हम् ॥२३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:23 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:23


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् कैसे होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! जैसे (अयम्) यह सूर्य्य (उषसः) प्रातःकाल वेलाओं को (सुपत्नीः) सुन्दर भार्याओं के सदृश (अकृणोत्) करता है, वैसे एक स्त्री के ग्रहणरूप व्रतधारी आप लोग हों और जैसे (अयम्) यह परमात्मा (सूर्य्ये) सूर्य्य के (अन्तः) मध्य में (ज्योतिः) प्रकाश को (अदधात्) धारण करता है, वैसे आत्माओं में विद्या के प्रकाश को धारण करिये और जैसे (अयम्) यह ईश्वर (दिवि) प्रकाश में (त्रितेषु) प्रसिद्ध =अग्नि बिजुली और सूर्य में (रोचनेषु) प्रकाशमानों में (अमृतम्) नाश से रहित (निगूळ्हम्) अत्यन्त गुप्त अतीन्द्रिय (त्रिधातु) सत्व, रज और तमः स्वरूप जगत् को (विन्दत्) प्राप्त होता है, वैसे प्रकृति आदि जगत् को जानिये ॥२३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो इस जगत् में विवाहित एक स्त्री के ग्रहणरूप व्रतधारी, विद्या और अविद्या के प्रकाशक, कार्य्य-कारण स्वरूप गुप्त पदार्थों की विद्या के जाननेवाले होवें वे सूर्य्य, ईश्वर और यथार्थवक्ता जन के सदृश मन्तव्य होवें ॥२३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथाऽयं उषसः सुपत्नीरकृणोत्तथैकपत्नीव्रता यूयं भवत यथाऽयमीश्वरः सूर्य्येऽन्तर्ज्योतिरदधात् तथात्मासु विद्याप्रकाशं धत्त यथाऽयं जगदीश्वरो दिवि त्रितेषु रोचनेष्वमृतं निगूळ्हं त्रिधात्वव्यक्तं विन्दत्तथा प्रकृत्यादिकं जगद्विजानीत ॥२३॥

Word-Meaning: - (अयम्) सूर्य्यः (अकृणोत्) करोति (उषसः) (सुपत्नीः) शोभना भार्या इव (अयम्) परमात्मा (सूर्य्ये) सवितरि (अदधात्) दधाति (ज्योतिः) प्रकाशम् (अन्तः) मध्ये (अयम्) (त्रिधातु) सत्वरजस्तमोमयं जगत् (दिवि) प्रकाशे (रोचनेषु) प्रकाशमानेषु (त्रितेषु) प्रसिद्धविद्युत्सूर्येषु (विन्दत्) विन्दति (अमृतम्) नाशरहितम् (निगूळ्हम्) नितरां गुप्तमतीन्द्रियम् ॥२३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! येऽत्र जगति विवाहितैकस्त्रीव्रता विद्याऽविद्याप्रकाशकाः कार्य्यकारणात्मगुप्तपदार्थविद्यावेत्तारः स्युस्ते सूर्य्यवदीश्वरवदाप्तवन्मन्तव्याः स्युः ॥२३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे या जगात पत्नीपरायण, एकनिष्ठ, विद्या व अविद्या प्रकट करणारे कार्यकारणरूप गुप्त पदार्थांची विद्या जाणणारे असतील तर त्यांचे सूर्य, ईश्वर व विद्वान लोकांप्रमाणे मन्तव्य असते. ॥ २३ ॥