वृषा॑सि दि॒वो वृ॑ष॒भः पृ॑थि॒व्या वृषा॒ सिन्धू॑नां वृष॒भः स्तिया॑नाम्। वृष्णे॑ त॒ इन्दु॑र्वृषभ पीपाय स्वा॒दू रसो॑ मधु॒पेयो॒ वरा॑य ॥२१॥
vṛṣāsi divo vṛṣabhaḥ pṛthivyā vṛṣā sindhūnāṁ vṛṣabhaḥ stiyānām | vṛṣṇe ta indur vṛṣabha pīpāya svādū raso madhupeyo varāya ||
वृषा॑। अ॒सि॒। दि॒वः। वृ॒ष॒भः। पृ॒थि॒व्याः। वृषा॑। सिन्धू॑नाम्। वृ॒ष॒भः। स्तिया॑नाम्। वृष्णे॑। ते॒। इन्दुः॑। वृ॒ष॒भ॒। पी॒पा॒य॒। स्वा॒दुः। रसः॑। म॒धु॒ऽपेयः॑। वरा॑य ॥२१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय का कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स राजा कीदृशः स्यादित्याह ॥
हे वृषभेन्द्र ! यतस्त्वं दिवो वृषभः पृथिव्या वृषा सिन्धूनां वृषा स्तियानां वृषभोऽसि ते वराय वृष्णे पीपाय स्वादुरिन्दू रसो मधुपेयो रसोऽस्तु ॥२१॥
MATA SAVITA JOSHI
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