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आ॒सु ष्मा॑ णो मघवन्निन्द्र पृ॒त्स्व१॒॑स्मभ्यं॒ महि॒ वरि॑वः सु॒गं कः॑। अ॒पां तो॒कस्य॒ तन॑यस्य जे॒ष इन्द्र॑ सू॒रीन्कृ॑णु॒हि स्मा॑ नो अ॒र्धम् ॥१८॥

English Transliteration

āsu ṣmā ṇo maghavann indra pṛtsv asmabhyam mahi varivaḥ sugaṁ kaḥ | apāṁ tokasya tanayasya jeṣa indra sūrīn kṛṇuhi smā no ardham ||

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Pad Path

आ॒सु। स्म॒। नः॒। म॒घ॒ऽव॒न्। इ॒न्द्र॒। पृ॒त्ऽसु। अ॒स्मभ्य॑म्। महि॑। वरि॑वः। सु॒ऽगम्। क॒रिति॑ कः। अ॒पाम्। तो॒कस्य॑। तन॑यस्य। जे॒षे। इन्द्र॑। सू॒रीन्। कृ॒णु॒हि। स्म॒। नः॒। अ॒र्धम् ॥१८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:18 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और प्रजाजनों को निरन्तर क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) बहुत धन से युक्त (इन्द्र) दुष्टों के मारनेवाले ! आप (आसु) इन (पृत्सु) वीर मनुष्यों की सेनाओं में (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (महि) बड़े (सुगम्) उत्तम प्रकार चलते हैं जिसमें उस (वरिवः) सेवन को (कः) करें (नः) हम लोगों को (स्मा) ही विजयी करें ओर हे (इन्द्र) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों के देनेवाले ! आप (अपाम्) प्राणों के (तोकस्य) शीघ्र उत्पन्न हुए अपत्य के और (तनयस्य) सुकुमार के बोध के लिये और शत्रुओं को (जेषे) जीतने के लिये (नः) हम लोगों को (सूरीन्) युद्धविद्या में कुशल विद्वान् और (अर्धम्) अच्छे प्रकार समृद्धि को (स्मा) ही (कृणुहि) करिये ॥१८॥
Connotation: - राजा वैसा यत्न करे जैसे अपनी सेनायें उत्तम प्रकार शिक्षित, जीतनेवाली और बलयुक्त होवें और सम्पूर्ण बालक और कन्यायें ब्रह्मचर्य्य से विद्यायुक्त होकर समृद्धि को प्राप्त हुए सत्य, न्याय और धर्म का निरन्तर सेवन करें ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजप्रजाजनैः सततं किमनुष्ठेयमित्याह ॥

Anvay:

हे मघवनिन्द्र ! त्वमासु पृत्स्वस्मभ्यं महि सुगं वरिवः कः, नोऽस्मान्त्स्मा विजयिनः कः। हे इन्द्र ! त्वमपां तोकस्य तनस्य बोधाय शत्रूञ्जेषे नोऽस्मान्त्सूरीनर्धं स्मा कृणुहि ॥१८॥

Word-Meaning: - (आसु) (स्मा) एव। अत्र निपातस्य दीर्घः। (नः) अस्मान् (मघवन्) महाधनयुक्त (इन्द्र) दुष्टानां विदारक (पृत्सु) वीरमनुष्यसेनासु (अस्मभ्यम्) (महि) महत् (वरिवः) सेवनम् (सुगम्) सुष्ठु गच्छन्ति यस्मिँस्तत् (कः) कुर्याः (अपाम्) प्राणानाम् (तोकस्य) सद्यो जातस्याऽपत्यस्य (तनयस्य) सुकुमारस्य (जेषे) जेतुम् (इन्द्र) सकलैश्वर्यप्रद (सूरीन्) युद्धविद्याकुशलान् विपश्चितः (कृणुहि) (स्मा) एव। अत्रापि निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) (अर्धम्) सुसमृद्धिम् ॥१८॥
Connotation: - राजा तथा यत्नमातिष्ठेद् यथा स्वकीयाः सेनाः सुशिक्षिता विजयिन्यो बलवत्यो भवेयुः सर्वे बालकाः कन्याश्च ब्रह्मचर्येण विद्यायुक्ता भूत्वा समृद्धिं प्राप्ताः सत्यं न्यायं धर्मं सततं सेवेरन् ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजाने असा प्रयत्न करावा की आपली सेना सुशिक्षित, विजयी व बलवान व्हावी आणि सर्व बालके व बालिकांनी ब्रह्मचर्याने विद्यायुक्त बनून समृद्धी प्राप्त करून सत्य, न्याय, धर्माचे निरंतर ग्रहण करावे. ॥ १८ ॥