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मा जस्व॑ने वृषभ नो ररीथा॒ मा ते॑ रे॒वतः॑ स॒ख्ये रि॑षाम। पू॒र्वीष्ट॑ इन्द्र नि॒ष्षिधो॒ जने॑षु ज॒ह्यसु॑ष्वी॒न्प्र वृ॒हापृ॑णतः ॥११॥

English Transliteration

mā jasvane vṛṣabha no rarīthā mā te revataḥ sakhye riṣāma | pūrvīṣ ṭa indra niṣṣidho janeṣu jahy asuṣvīn pra vṛhāpṛṇataḥ ||

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Pad Path

मा। जस्व॑ने। वृ॒ष॒भ॒। नः॒। र॒री॒थाः॒। मा। ते॒। रे॒वतः॑। स॒ख्ये। रि॒षा॒म॒। पू॒र्वीः। ते॒। इ॒न्द्र॒। निः॒ऽसिधः॑। जने॑षु। ज॒हि। असु॑स्वीन्। प्र। वृ॒ह॒। अपृ॑णतः ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:11 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को क्या नहीं करके क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वृषभ) बलयुक्त (इन्द्र) दुःखों के नाश करनेवाले राजन् ! आप (जस्वने) अन्याय से दूसरे के धन को अन्यत्र प्राप्त करानेवाले दुष्ट राजा के लिये (नः) हम लोगों को (मा) मत (ररीथाः) दीजिये और हम लोग (ते) आप (रेवतः) बहुत धनवाले के (सख्ये) मित्रपने के लिये (मा) नहीं (रिषाम) क्रुद्ध होवें और जो (ते) आपके (जनेषु) मनुष्यों में (पूर्वीः) प्राचीन (निःषिधः) सुखकारक क्रियायें हैं, उनको दीजिये (असुष्वीन्) उत्पत्ति के नहीं करनेवालों का (जहि) त्याग करिये और (अपृणतः) दुःख के देनेवाले दुर्जन से हम लोगों के (प्र, वृह) पृथक् करिये ॥११॥
Connotation: - हे राजन् ! जो हम लोगों को पीड़ा देवें उनके आधीन मत करिये और कल्याण में क्रियाओं को प्राप्त कराइये, वैसे हम लोग भी इस सब को आपके लिये करें। इस प्रकार मित्र होकर अभीष्ट मनोरथों को सब हम लोग प्राप्त होवें ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः किमकृत्वा किमनुष्ठेयमित्याह ॥

Anvay:

हे वृषभेन्द्र ! त्वं जस्वने नोऽस्मान्मा ररीथा वयं ते रेवतः सख्ये मा रिषाम यास्ते जनेषु पूर्वीर्निःषिधस्सन्ति ता ररीथा असुष्वीन् जह्यपृणतोऽस्मान् प्र वृह ॥११॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (जस्वने) अन्यायेन परस्वप्रापकाय दुष्टाय राज्ञे। जसतीति गतिकर्मा। (निघं०२.१४) (वृषभ) बलिष्ठ (नः) अस्मान् (ररीथाः) दद्याः (मा) (ते) तव (इन्द्र) दुःखविदारक राजन् (निःषिधः) निःश्रेयसकर्यः क्रियाः (जनेषु) (जहि) (असुष्वीन्) अभिषवस्याकर्तॄन् (प्र) (वृह) पृथक्कुरु (अपृणतः) दुःखदातुर्दुर्जनात् ॥११॥
Connotation: - हे राजन् ! येऽस्मान् पीडयेयुस्तदधीनान्मा कुर्य्याः श्रेयसि क्रियाः प्रापयेस्तथा वयमप्येतत्सर्वं त्वदर्थमनुतिष्ठेम, एवं सखायो भूत्वाऽभीष्टान् कामान्त्सर्वे वयं प्राप्नुयाम ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जे आम्हाला त्रास देतात त्यांच्या अधीन करू नकोस. कल्याणाचे काम कर. तसे आम्ही सर्वांनीही तुझ्यासाठी काम केले पाहिजे. या प्रकारे मित्र बनून सर्वांचे इच्छित कार्य पूर्ण व्हावे. ॥ ११ ॥