प्रत्य॑स्मै॒ पिपीष॑ते॒ विश्वा॑नि वि॒दुषे॑ भर। अ॒रं॒ग॒माय॒ जग्म॒येऽप॑श्चाद्दध्वने॒ नरे॑ ॥१॥
praty asmai pipīṣate viśvāni viduṣe bhara | araṁgamāya jagmaye paścāddaghvane nare ||
प्रति॑। अ॒स्मै॒। पिपी॑षते। विश्वा॑नि। वि॒दुषे॑। भ॒र॒। अ॒र॒म्ऽग॒माय॑। जग्म॑ये। अप॑श्चात्ऽदध्वने। नरे॑ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब चार ऋचावाले बयालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और प्रजाजन परस्पर कैसा वर्त्ताव करे, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
हे विद्वन् राजंस्त्वं जग्मयेऽपश्चाद्दध्वनेऽरङ्गमाय पिपीषते विदुषेऽस्मै नरे विश्वानि भराऽयमपि तुभ्यमेतानि प्रति भरतु ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात इंद्र, राजा, विद्वान व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.