समि॑द्धे अ॒ग्नौ सु॒त इ॑न्द्र॒ सोम॒ आ त्वा॑ वहन्तु॒ हर॑यो॒ वहि॑ष्ठाः। त्वा॒य॒ता मन॑सा जोहवी॒मीन्द्रा या॑हि सुवि॒ताय॑ म॒हे नः॑ ॥३॥
samiddhe agnau suta indra soma ā tvā vahantu harayo vahiṣṭhāḥ | tvāyatā manasā johavīmīndrā yāhi suvitāya mahe naḥ ||
सम्ऽइ॑द्धे। अ॒ग्नौ। सु॒ते। इ॒न्द्र॒। सोमे॑। आ। त्वा॒। व॒ह॒न्तु॒। हर॑यः। वहि॑ष्ठाः। त्वा॒ऽय॒ता। मन॑सा। जो॒ह॒वी॒मि॒। इन्द्र॑। आ। या॒हि॒। सु॒वि॒ताय॑। म॒हे। नः॑ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर राजा और राजा के जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुना राजा राजजनाश्च किं कुर्युरित्याह ॥
हे इन्द्र ! वहिष्ठा हरयो समिद्धेऽग्नौ सुते सोमे त्वा त्वामाऽऽवहन्तु। हे इन्द्र ! यंत्वायता मनसाऽहं त्वां जोहवीमि स त्वं महे सुविताय न आ याहि ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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