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निति॑क्ति॒ यो वा॑र॒णमन्न॒मत्ति॑ वा॒युर्न राष्ट्र्यत्ये॑त्य॒क्तून्। तु॒र्याम॒ यस्त॑ आ॒दिशा॒मरा॑ती॒रत्यो॒ न ह्रुतः॒ पत॑तः परि॒ह्रुत् ॥५॥

English Transliteration

nitikti yo vāraṇam annam atti vāyur na rāṣṭry aty ety aktūn | turyāma yas ta ādiśām arātīr atyo na hrutaḥ patataḥ parihrut ||

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Pad Path

निऽति॑क्ति। यः। वा॒र॒नम्। अन्न॑म्। अत्ति॑। वा॒युः। न। राष्ट्री॑। अति॑। ए॒ति॒। अ॒क्तून्। तु॒र्यामः॑। यः। ते॒। आ॒ऽदिशा॑म्। अरा॑तीः। अत्यः॑। न। ह्रुतः॑। पत॑तः। प॒रि॒ऽह्रुत् ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:4» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (नितिक्ति) अत्यन्त तीक्ष्ण किये (वारणम्) स्वीकार करने और (अन्नम्) खाने योग्य पदार्थ को (अत्ति) भक्षण करता और (वायुः) पवन (न) जैसे (अक्तून्) प्रसिद्ध पदार्थों को (अति, एति) व्याप्त होता है और (यः) जो (पततः) पतनशील (ते) आप का (ह्रुतः) कुटिलता को प्राप्त हुआ (अत्यः) मार्ग को व्याप्त हुए घोड़े के (न) समान (परिह्रुत्) सब ओर से कुटिल गमन करनेवाला है और जिसके हम लोग (आदिशाम्) सब प्रकार से दिये हुओं के (अरातीः) शत्रुओं का (तुर्याम) नाश करें और (राष्ट्री) ईश्वर जैसे वैसे न्याय में वर्त्ताव करें, उसका हम लोग सेवन करें ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो शुद्ध खाने और पीने योग्य पदार्थ का सेवन करता है, वायु के सदृश बलिष्ठ और ईश्वर के सदृश पक्षपात से रहित होकर न्याय की अपेक्षा से विपरीत दशा को प्राप्त हुओं का मारनेवाला हो, उसी को राजा मानो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो विद्वान्नितिक्ति वारणमन्नमत्ति वायुर्नाक्तून्नत्येति यः पततस्ते ह्रुतोऽत्यो न परिह्रुदस्ति यस्य वयमादिशामरातीस्तुर्याम राष्ट्रीव न्याये वर्त्तेमहि तं वयं सेवेमहि ॥५॥

Word-Meaning: - (नितिक्ति) यन्नितरां तीव्रीकृतम् (यः) (वारणम्) वरणीयम् (अन्नम्) अत्तव्यम् (अत्ति) भक्षयति (वायुः) यो वाति सः (न) इव (राष्ट्री) ईश्वरः। राष्ट्रीतीश्वरनाम। (निघं०२.२२) (अति) व्याप्तिम् (एति) गच्छति (अक्तून्) प्रसिद्धान् पदार्थान् (तुर्याम) हिंसेम (यः) (ते) (आदिशाम्) समन्ताद् दीयमानानाम् (अरातीः) शत्रून् (अत्यः) अतति व्याप्नोत्यध्वानमित्यत्योऽश्वः (न) इव (ह्रुतः) कुटिलत्वं गतः (पततः) पतनशीलस्य (परिह्रुत्) यः परितः सर्वतो ह्वरति कुटिलां गतिं गच्छति ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः शुद्धं भोज्यं पेयं च सेवते वायुवद्बलिष्ठ ईश्वरवत्पक्षपातरहितो न्यायाद् वक्रतां गतान् परिहन्ता भवेत्तमेव राजानं मन्यध्वम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो शुद्ध खाण्यापिण्यायोग्य पदार्थ ग्रहण करतो, वायूप्रमाणे बलवान व ईश्वराप्रमाणे भेदभावरहित होऊन न्याय न करणाऱ्या व अन्यायाने वागणाऱ्याचे हनन करतो त्यालाच राजा माना. ॥ ५ ॥