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इन्द्रो॒ वाज॑स्य॒ स्थवि॑रस्य दा॒तेन्द्रो॑ गी॒र्भिर्व॑र्धतां वृ॒द्धम॑हाः। इन्द्रो॑ वृ॒त्रं हनि॑ष्ठो अस्तु॒ सत्वा ता सू॒रिः पृ॑णति॒ तूतु॑जानः ॥५॥

English Transliteration

indro vājasya sthavirasya dātendro gīrbhir vardhatāṁ vṛddhamahāḥ | indro vṛtraṁ haniṣṭho astu satvā tā sūriḥ pṛṇati tūtujānaḥ ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। वाज॑स्य। स्थवि॑रस्य। दा॒ता। इन्द्रः॑। गीः॒ऽभिः। व॒र्ध॒ता॒म्। वृ॒द्धऽम॑हाः। इन्द्रः॑। वृ॒त्रम्। हनि॑ष्ठः। अ॒स्तु॒। सत्वा॑। आ। ता। सू॒रिः। पृ॒ण॒ति॒। तूतु॑जानः ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:37» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (इन्द्रः) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त और (स्थविरस्य) स्थूल (वाजस्य) अन्न आदि का (दाता) देनेवाला और जो (इन्द्रः) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त राजा (गीर्भिः) वाणियों से (वर्धताम्) बढ़े और (वृद्धमहाः) वृद्धों से सत्कार किया (इन्द्रः) सूर्य्य (वृत्रम्) मेघ का जैसे वैसे शत्रुओं का (हनिष्ठः) अत्यन्त मारनेवाला (अस्तु) हो और जो (तूतुजानः) शीघ्र करनेवाला (सत्वा) सतोगुण से युक्त (सूरिः) विद्वान् (ता) उन धनों को (आ, पृणति) अच्छे प्रकार सुखयुक्त करता है, उसका तुम सब लोग सत्कार करो ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो अभय का देनेवाला, विद्या में वृद्धों और आप्तों का सेवक, दुष्टों का मारनेवाला, शीघ्रकर्त्ता, विद्वान् मनुष्य हो, उसी को तुम लोग राजा मानो ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा और प्रजा के कर्म्मों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सैंतीसवाँ सूक्त और नवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! य इन्द्रः स्थविरस्य वाजस्य दाता य इन्द्रो गीर्भिर्वर्धतां वृद्धमहा इन्द्रो वृत्रमिव शत्रूणां हनिष्ठोऽस्तु यस्तूतुजानः सत्वा सूरिस्ताऽऽपृणति तं सर्वे यूयं सत्कुरुत ॥५॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) राजा (वाजस्य) अन्नादेः (स्थविरस्य) स्थूलस्य (दाता) (इन्द्रः) विद्यैश्वर्य्ययुक्तः (गीर्भिः) वाग्भिः (वर्धताम्) (वृद्धमहाः) वृद्धैः पूजितः (इन्द्रः) सूर्य्यः (वृत्रम्) मेघमिव (हनिष्ठः) अतिशयेन हन्ता (अस्तु) (सत्वा) सत्वगुणोपेतः (आ) (ता) तानि धनानि (सूरिः) विद्वान् (पृणति) सुखयति (तूतुजानः) सद्यः कर्त्ता ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! योऽभयस्य दाता विद्यावृद्धाप्तानां सेवको दुष्टानां हन्ता क्षिप्रकारी विद्वान् मनुष्यो भवेत्तमेव यूयं राजानं मन्यध्वमिति ॥५॥ अत्रेन्द्रराजप्रजाकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तत्रिंशत्तमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो अभय देणारा, विद्येने वृद्ध व आप्तांचा सेवक, दुष्टांना मारणारा, शीघ्रकारक विद्वान असतो त्यालाच तुम्ही राजा माना. ॥ ५ ॥