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स तु श्रु॑धि॒ श्रुत्या॒ यो दु॑वो॒युर्द्यौर्न भूमा॒भि रायो॑ अ॒र्यः। असो॒ यथा॑ नः॒ शव॑सा चका॒नो यु॒गेयु॑गे॒ वय॑सा॒ चेकि॑तानः ॥५॥

English Transliteration

sa tu śrudhi śrutyā yo duvoyur dyaur na bhūmābhi rāyo aryaḥ | aso yathā naḥ śavasā cakāno yuge-yuge vayasā cekitānaḥ ||

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Pad Path

सः। तु। श्रु॒धि॒। श्रुत्या॑। यः। दु॒वः॒ऽयुः। द्यौः। न। भूम॑। अ॒भि। रायः॑। अ॒र्यः। असः॑। यथा॑। नः॒। शव॑सा। च॒का॒नः। यु॒गेऽयु॑गे। वय॑सा। चेकि॑तानः ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:36» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे ऐश्वर्य से युक्त ! (यः) जो (द्यौः) प्रकाश (न) जैसे वैसे (दुवोयुः) सेवा की कामना करता हुआ (अर्यः) स्वामी (शवसा) बल से (चकानः) कामना करता हुआ (युगेयुगे) प्रतिवर्ष (वयसा) अवस्था में (चेकितानः) जानता हुआ (श्रुत्या) श्रवण से (यथा) जैसे (नः) हम लोगों के समाचार को सुनता है और जैसे (सः) वह (असः) हो तथा (रायः) धनों को प्राप्त हुए हम लोग प्रकाश जैसे वैसे (भूम) होवें, वैसे (तु) तो आप सब की बात को (अभि, श्रुधि) सुनें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे परीक्षक विद्यार्थियों के अध्ययन की परीक्षा करके विद्वान् करता है, वैसे ही राजा यथार्थ न्याय को करके प्रजाओं को प्रसन्न करे ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र, विद्वान् और राजा के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छत्तीसवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यो द्यौर्न दुवोयुरर्यः शवसा चकानो युगेयुगे वयसा चेकितानः श्रुत्या यथा नः समाचारं शृणोति यथा सोऽसो रायः प्राप्ता वयं द्यौर्न भूम तथा तु त्वं सर्वेषां वार्तामभि श्रुधि ॥५॥

Word-Meaning: - (सः) (तु) (श्रुधि) शृणु (श्रुत्या) श्रवणेन (यः) (दुवोयुः) परिचरणं कामयमानः (द्यौः) प्रकाशः (न) इव (भूम) भवेम (अभि) (रायः) धनानि (अर्यः) स्वामी (असः) भवेत् (यथा) (नः) अस्माकम् (शवसा) बलेन (चकानः) कामयमानः (युगेयुगे) प्रतिवर्षम् (वयसा) आयुषा (चेकितानः) विजानन् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा परीक्षको विद्यार्थिनामध्ययनपरीक्षां कृत्वा विदुषः सम्पादयति तथैव राजा यथार्थं न्यायं कृत्वा प्रजा रञ्जयेदिति ॥५॥ अत्रेन्द्रविद्वद्राजकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्त्रिंशत्तमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा परीक्षक विद्यार्थ्यांच्या अभ्यासाची परीक्षा घेऊन विद्वान करतो तसे राजाने यथार्थ न्याय करून प्रजेला प्रसन्न करावे. ॥ ५ ॥