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पु॒रु॒हू॒तो यः पु॑रुगू॒र्त ऋभ्वाँ॒ एकः॑ पुरुप्रश॒स्तो अस्ति॑ य॒ज्ञैः। रथो॒ न म॒हे शव॑से युजा॒नो॒३॒॑स्माभि॒रिन्द्रो॑ अनु॒माद्यो॑ भूत् ॥२॥

English Transliteration

puruhūto yaḥ purugūrta ṛbhvām̐ ekaḥ purupraśasto asti yajñaiḥ | ratho na mahe śavase yujāno smābhir indro anumādyo bhūt ||

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Pad Path

पु॒रु॒ऽहू॒तः। यः। पु॒रु॒ऽगू॒र्तः। ऋभ्वा॑। एकः॑। पु॒रु॒ऽप्र॒श॒स्तः। अस्ति॑। य॒ज्ञैः। रथः॑। न। म॒हे। शव॑से। यु॒जा॒नः। अ॒स्माभिः॑। इन्द्रः॑। अ॒नु॒ऽमाद्यः॑। भू॒त् ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:34» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वज्जनो ! (यः) जो (पुरुहूतः) बहुतों से सत्कार किया गया (पुरुगूर्त्तः) बहुतों से उत्तम कराया गया (पुरुप्रशस्तः) बहुतों में उत्तम (एकः) सहायरहित (रथः) विमान आदि वाहन (न) जैसे वैसे (महे) बड़े (शवसे) बल के लिये (यज्ञैः) विद्वानों के सत्कार और सङ्ग तथा दोनों से और (ऋभ्वा) बड़े बुद्धिमान् से (युजानः) युक्त हुआ (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्य का देनेवाला (अस्माभिः) हम लोगों के साथ (अनुमाद्यः) पीछे से प्रसन्न होने योग्य (भूत्) होवे, वह हम लोगों का आनन्दकारक (अस्ति) है, उस राजा को आप लोग भी मानिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे घोड़ों और अग्नि आदिकों से युक्त रथ अभीष्ट कार्य्यों को करता है, वैसे ही उत्तम सहायों के सहित राजा राज्य के कार्य्यों को पूर्ण करने को समर्थ होता है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यः पुरुहूतः पुरुगूर्त्तः पुरुप्रशस्त एको रथो न महे शवसे यज्ञैर्ऋभ्वा युजान इन्द्रोऽस्माभिस्सहाऽनुमाद्यो भूत् सोऽस्माकं हर्षकोऽस्ति तं राजानं यूयमपि मन्यध्वम् ॥२॥

Word-Meaning: - (पुरुहूतः) बहुभिः सत्कृतः (यः) (पुरुगूर्त्तः) बहुभिरुद्यमितः कृतपुरुषार्थकः (ऋभ्वा) महता मेधाविना (एकः) असहायः (पुरुप्रशस्तः) बहुषूत्तमः (अस्ति) (यज्ञैः) विद्वत्सत्कारसङ्गदानैः (रथः) विमानादियानम् (न) इव (महे) महते (शवसे) बलाय (युजानः) (अस्माभिः) (इन्द्रः) परमैश्वर्यदाता (अनुमाद्यः) अनुहर्षितुं योग्यः (भूत्) भवेत् ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथाश्वैरग्न्यादिभिश्च युक्तो रथोऽभीष्टानि कार्याणि करोति, तथैव सुसहायो राजा राज्यकार्याण्यलङ्कर्त्तुं शक्नोति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे घोडे व अग्नी इत्यादींनी युक्त रथ इच्छित कार्य करतो तसेच उत्तम साह्य असेल तर राजा राज्याचे कार्य करण्यास समर्थ होतो. ॥ २ ॥